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माचिस लखनवी

1918 - 1970

माचिस लखनवी

अशआर 14

और तो कुछ भी नहीं हज़रत-ए-'माचिस' लेकिन

आप में आग लगाने का कमाल अच्छा है

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वो उन का ज़माना था जहाँ अक़्ल बड़ी थी

ये मेरा ज़माना है यहाँ भैंस बड़ी है

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वाइ'ज़ को जो देखो तो घटा-टोप अँधेरा

साक़ी को जो देखो तो किरन फूट रही है

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ढूँडिए ख़ैर से जा कर कोई मोटी ससुराल

हाथ जो मुफ़्त में आए तो वो माल अच्छा है

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वाइज़ ने मुझ में देखी है ईमान की कमी

वाइज़ में सिर्फ़ दुम की कसर देखता हूँ मैं

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हास्य 19

पुस्तकें 1

 

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