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मतीन नियाज़ी

1913 - 1993 | कानपुर, भारत

मतीन नियाज़ी

ग़ज़ल 9

अशआर 27

आए थे बे-नियाज़ तिरी बारगाह में

जाते हैं इक हुजूम-ए-तमन्ना लिए हुए

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गुमरही राह-नुमाई के मुक़ाबिल आई

वक़्त ने देखिए दीवार पे लिक्खा क्या है

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फ़ज़ा में गूँज रही हैं कहानियाँ ग़म की

हमीं को हौसला-ए-शरह-ए-दास्ताँ रहा

ये ज़िंदगी जिसे अपना समझ रहे हैं सब

है मुस्तआर फ़क़त रौनक-ए-जहाँ के लिए

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हुस्न की बे-रुख़ी को अहल-ए-नज़र

हासिल-ए-इल्तिफ़ात कहते हैं

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