महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल 38
अशआर 8
ज़मीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं
हमारी ख़ुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं
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मुझे जिस हाल में छोड़ा उसी हालत में पाओगी
बड़ी ईमान-दारी से तुम्हारा हिज्र काटा है
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'अक़्ल और 'इश्क़ लड़ते रहे देर तक
'अक़्ल मारी गई 'इश्क़ ज़िंदा रहा
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तुम मुझे अपनी क़सम दे कर कहो
'आफ़रीदी' आप सिगरेट छोड़ दें
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तुम्हारे हुस्न को कब तक वरक़ वरक़ पढ़ते
सो एक रात में पूरी किताब पढ़ डाली
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