मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल 51
अशआर 68
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
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उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
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वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
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थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
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तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
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