मुज़फ्फर अली सय्यद
ग़ज़ल 10
अशआर 5
जो एक पल के लिए ख़ुद बदल नहीं सकते
ये कह रहे हैं कि सारा जहाँ बदल डालो
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देखो तो हर बग़ल में है दफ़्तर दबा हुआ
अख़बार में जो छापना चाहो ख़बर नहीं
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मानिंद-ए-क़ैस रेत न सहरा की छानिए
किस को मिली है किस की ख़बर रक़्स कीजिए
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ये भी क्या कम है बसीरत की नज़र हासिल हुई
दोस्तों ने की जो तुझ से दुश्मनी मातम न कर
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लालच की नज़र कौन किसी शख़्स को देखे
आँखों के वरे ख़ाक है आँखों के परे ख़ाक
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