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Qaisarul Jafri's Photo'

क़ैसर-उल जाफ़री

1926 - 2005 | मुंबई, भारत

अपनी ग़ज़ल "दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है" , के लिए प्रसिद्ध

अपनी ग़ज़ल "दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है" , के लिए प्रसिद्ध

क़ैसर-उल जाफ़री

ग़ज़ल 66

नज़्म 19

अशआर 28

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो

शबनम का क़तरा भी जिन को दरिया लगता है

तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर

कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा लगे

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे

तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे

फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'

बंद कर लोगे जो मुट्ठी में तो मर जाएगा

बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे

शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे

पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 8

 

वीडियो 8

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Chandni tha ke ghazal tha ke saba tha kya tha

क़ैसर-उल जाफ़री

Chura loon agar bura na lage

क़ैसर-उल जाफ़री

Qaisar ul jafri at a mushaira

क़ैसर-उल जाफ़री

ऑडियो 9

घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे

ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया

तिरी बेवफ़ाई के बाद भी मिरे दिल का प्यार नहीं गया

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