राजेन्द्र कृष्ण के शेर
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
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न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे
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टैग : दुआ
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लोग रो रो के भी इस दुनिया में जी लेते हैं
एक हम हैं कि हँसे भी तो गुज़ारा न हुआ
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इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
ग़ैर तो ग़ैर हैं अपनों का सहारा न हुआ
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इक मोहब्बत के सिवा और न कुछ माँगा था
क्या करें ये भी ज़माने को गवारा न हुआ
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ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे
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हमें वास्ता तड़प से हमें काम आँसुओं से
तुझे याद कर के रोए या तुझे भुला के रोए
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मुरझा चुका है फिर भी ये दिल फूल ही तो है
अब आप की ख़ुशी इसे काँटों में तौलिए
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इक छोटा सा था मेरा आशियाँ
आज तिनके से अलग तिनका हुआ
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