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दिल पर शेर

दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब

को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।

दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है

यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं

अंदलीब शादानी

कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर

अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा

जिगर मुरादाबादी

दिल को इस तरह देखने वाले

दिल अगर बे-क़रार हो जाए

जलालुद्दीन अकबर

लाखों में इंतिख़ाब के क़ाबिल बना दिया

जिस दिल को तुम ने देख लिया दिल बना दिया

जिगर मुरादाबादी

रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा

एक नक़्शा सामने आता रहा जाता रहा

अख़्तर शीरानी

हाथ रख रख के वो सीने पे किसी का कहना

दिल से दर्द उठता है पहले कि जिगर से पहले

हफ़ीज़ जालंधरी

मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए

शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में

मंसूर उस्मानी

उल्टी इक हाथ से नक़ाब उन की

एक से अपने दिल को थाम लिया

जलील मानिकपूरी

बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का

जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ निकला

हैदर अली आतिश

इलाही एक दिल किस किस को दूँ मैं

हज़ारों बुत हैं याँ हिन्दोस्तान है

हैदर अली आतिश

जिस दिल को तुम ने लुत्फ़ से अपना बना लिया

उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था

जिगर मुरादाबादी

किसी ने मोल पूछा दिल-ए-शिकस्ता का

कोई ख़रीद के टूटा पियाला क्या करता

हैदर अली आतिश

रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा

कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बअ'द

ख़ुमार बाराबंकवी

रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा

अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तुझे कुछ इश्क़ उल्फ़त के सिवा भी याद है दिल

सुनाए जा रहा है एक ही अफ़्साना बरसों से

अब्दुल मजीद सालिक

दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मेहरबानी चाहिए

अब्दुल हमीद अदम

फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे

और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे

बशीर बद्र

मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'

इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया

मुनीर नियाज़ी

फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहे

दिल ख़ून हो रहा था मगर देखते रहे

असर लखनवी

मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया

जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है

आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

राह-ए-दिल को रौंद कर आगे निकल जाएँगे लोग

आँख में उठता ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला रह जाएगा

इम्तियाज़ ख़ान

हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं

दिल हमेशा उदास रहता है

बशीर बद्र

दिल सा वहशी कभी क़ाबू में आया यारो

हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले

शहज़ाद अहमद

दिल उन्हें देंगे मगर हम देंगे इन शर्तों के साथ

आज़मा कर जाँच कर सुन कर समझ कर देख कर

नूह नारवी

नफ़रत भी उसी से है परस्तिश भी उसी की

इस दिल सा कोई हम ने तो काफ़र नहीं देखा

आलमताब तिश्ना

दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं

उसे कहो कि वो दिल के कहे में जाए

फ़राग़ रोहवी

दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है

जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है

बशीर बद्र

मुझे तो उन की इबादत पे रहम आता है

जबीं के साथ जो सज्दे में दिल झुका सके

ख़ुमार बाराबंकवी

मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है

कि आँसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती

जिगर मुरादाबादी

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो

अमीर मीनाई

दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़

एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए

दिल को तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है

हैदर अली आतिश

जो जी में आवे तो टुक झाँक अपने दिल की तरफ़

कि उस तरफ़ को इधर से भी राह निकले है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो

इब्न-ए-इंशा

सीने में इक खटक सी है और बस

हम नहीं जानते कि क्या है दिल

ऐश देहलवी

दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा

कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी

अनवर मसूद

दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी

इंतिहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया

फ़ानी बदायुनी

दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका

कम-बख़्त फिर भी चैन पाए तो क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते

अब कोई शिकवा हम नहीं करते

जौन एलिया

दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे

रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे बढ़ो

अदा जाफ़री

ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को

वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता

इस्माइल मेरठी

मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ

नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा

अकबर इलाहाबादी

दोस्त अहबाब से लेने सहारे जाना

दिल जो घबराए समुंदर के किनारे जाना

अब्दुल अहद साज़

झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे

तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे

राजेन्द्र कृष्ण

हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं दिल तो फिर तू ही

ख़याल-ए-यार से बेहतर कोई मेहमान पैदा कर

अहसन मारहरवी

अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपने

दिल ने हर बार कहा आग पराई ले ले

अहमद फ़राज़

दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से

कोई भी राहबर नहीं होता

फ़रहत कानपुरी

दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते थे

अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से

जलील मानिकपूरी

तुझ को पा कर भी कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल

इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी
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