रहमान फ़ारिस के शेर
कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए
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शजर ने पूछा कि तुझ में ये किस की ख़ुशबू है
हवा-ए-शाम-ए-अलम ने कहा उदासी की
तेरे बिन घड़ियाँ गिनी हैं रात दिन
नौ बरस ग्यारह महीने सात दिन
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वो पहले सिर्फ़ मिरी आँख में समाया था
फिर एक रोज़ रगों तक उतर गया मुझ में
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टैग : आँख
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मुझ को ख़ुद में जगह नहीं मिलती
तू है मौजूद इस क़दर मुझ में
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मिरी तो सारी दुनिया बस तुम्ही हो
ग़लत क्या है जो दुनिया-दार हूँ मैं
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टैग : दुनिया
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तुम तो दरवाज़ा खुला देख के दर आए हो
तुम ने देखा नहीं दीवार को दर होने तक
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