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साहिर लखनवी

1935 - 2019 | कराची, पाकिस्तान

साहिर लखनवी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 3

क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ

चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है

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मंज़िलें पाँव पकड़ती हैं ठहरने के लिए

शौक़ कहता है कि दो चार क़दम और सही

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कल तो इस आलम-ए-हस्ती से गुज़र जाना है

आज की रात तिरी बज़्म में हम और सही

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पुस्तकें 5

 

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