शकील जाज़िब
ग़ज़ल 11
नज़्म 3
अशआर 10
फिर तुझे और मुझे और कहीं जाना है
हम-सफ़र साथ तो चल जितनी सड़क बाक़ी है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मुझ को अता हुआ है ये कैसा लिबास-ए-ज़ीस्त
बढ़ते हैं जिस के चाक बराबर रफ़ू के साथ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
क्या करूँ ऐ तिश्नगी तेरा मुदावा बस वो लब
जिन लबों को छू के पानी आग बनता जाए है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
क्या किसी उम्मीद पर फिर से दर-ए-दिल वा करूँ
तुझ से बढ़ कर ख़ुद बता मेरा शनासा कौन था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ताज़ा वारिद हूँ मियाँ और ये शहर-ए-दिल है
कुछ कमाने को यहाँ कार-ए-ज़ियाँ ढूँडता हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए