aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1911 - 1979 | पटना, भारत
प्रगतिशील कहानीकार, शायर और नाटककार।
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
तेरी बे-पर्दगी ही हुस्न का पर्दा निकली
काम कुछ कर गई हर हाल में ग़फ़लत मेरी
कोई महफ़िल से उठ कर जा रहा है
सँभल ऐ दिल बुरा वक़्त आ रहा है
तमन्नाओं की दुनिया दिल में हम आबाद करते हैं
ग़ज़ब है अपने हाथों ज़िंदगी बरबाद करते हैं
क्या ग़म है जो हम गुमनाम रहे तुम तो न मगर बदनाम हुए
अच्छा है कि मेरे मरने पर दुनिया में मिरा मातम न हुआ
Aadmi Ke Roop
Alao
1942
Be Jad Ke Paude
1972
Be-Jad Ke Paude
1984
Chaar Chehre
1977
Intekhab-e-Nazm
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
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