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तालिब जयपुरी

1911

तालिब जयपुरी

ग़ज़ल 10

अशआर 3

बे-ख़ुदी में हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए

अब ख़ुदा मालूम काबा था कि वो बुत-ख़ाना था

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आँखों में आँसू लब पर तबस्सुम

मोहब्बत में ऐसे भी लम्हात आए

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उन की तरफ़ भी देखो ज़रा गदा-नवाज़

दामन ही तेरे सामने फैला के रह गए

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