ज़ुबैर अली ताबिश के शेर
पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा
बहुत दुश्वारियाँ होंगी अगर आसान समझेगा
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अब तलक उस को ध्यान हो मेरा
क्या पता ये गुमान हो मेरा
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ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
ज़लज़ले ने सब बराबर कर दिए
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हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
तुम्हारा दर्द ही रस्ता भटक गया होगा
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आज तो दिल के दर्द पर हँस कर
दर्द का दिल दुखा दिया मैं ने
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टैग : दर्द
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किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
कि तुम आँचल बिछाओगे वो दस्तर-ख़्वान समझेगा
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आइना कब बनाओगे मुझ को
मुझ से किस दिन मिलाओगे मुझ को
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इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
कुछ ने मेरा सर फोड़ा हैं कुछ पर मैं ने सर फोड़ा है
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बस मैं मायूस होने वाला था
और मौला ने तुझ को भेज दिया
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कोई तितली निशाने पर नहीं है
मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ
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बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
तू होता कौन है ये कहने वाला
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उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
जैसे कल इम्तिहान हो मेरा
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शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
ऐसा नहीं तो क्यूँ मुझे दफ़ना रहे हैं लोग
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वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए
उसी को छोड़ के सब कुछ दिखाई देता है
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तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
चराग़ ख़ुद भी तो जल जल के थक गया होगा
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अपना कंगन समझ रहे हो क्या
और कितना घुमाओगे मुझ को
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