तालिब-ए-दस्त-ए-हवस और कई दामन थे
हम से मिलता जो न यूसुफ़ के गरेबाँ से मिला
दस्त-ए-जुनूँ भी तंग हुआ दश्त-ए-इश्क़ में
अब चाक क्या करूँ कि गरेबान ही नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
तालिब-ए-दस्त-ए-हवस और कई दामन थे
हम से मिलता जो न यूसुफ़ के गरेबाँ से मिला
दस्त-ए-जुनूँ भी तंग हुआ दश्त-ए-इश्क़ में
अब चाक क्या करूँ कि गरेबान ही नहीं
Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here