ख़ुद्दारी पर चित्र/छाया शायरी

ख़ुद्दारी या आत्मसम्मान

वह पूंजी है जिस पर शायर हमेशा नाज़ करता रहा है और इसे जताने में भी कभी झिझक महसूस नहीं की। अपने वुजूद की अहमियत को समझना और उसे पूरा-पूरा सम्मान देना शायरों की ख़ास पहचान भी रही है। शायर सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अपनी ख़ुद्दारी पर लगने वाली हल्की सी चोट से भी तिलमिला उठता है। खुद्दारी शायरी कई ख़ूबसूरत मिसालों से भरी हैः

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा

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