ख़्वाब पर नज़्में

ख़्वाब सिर्फ़ वही नहीं

है जिस से हम नींद की हालत में गुज़रते हैं बल्कि जागते हुए भी हम ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा रंग बिरंगे ख़्वाबों में गुज़ारते हैं और उन ख़्वाबों की ताबीरों के पीछे सरगर्दां रहते हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब ऐसे ही शेरों पर मुश्तमिल है जो ख़ाब और ताबीर की कश्मकश में फंसे इन्सान की रूदाद सुनाते हैं। ये शायरी पढ़िए। इस में आपको अपने ख़्वाबों के नुक़ूश भी झिलमिलाते हुए नज़र आएँगे।

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