ख़्वाब पर चित्र/छाया शायरी

ख़्वाब सिर्फ़ वही नहीं

है जिस से हम नींद की हालत में गुज़रते हैं बल्कि जागते हुए भी हम ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा रंग बिरंगे ख़्वाबों में गुज़ारते हैं और उन ख़्वाबों की ताबीरों के पीछे सरगर्दां रहते हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब ऐसे ही शेरों पर मुश्तमिल है जो ख़ाब और ताबीर की कश्मकश में फंसे इन्सान की रूदाद सुनाते हैं। ये शायरी पढ़िए। इस में आपको अपने ख़्वाबों के नुक़ूश भी झिलमिलाते हुए नज़र आएँगे।

ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ

ख़्वाब में नाम तिरा ले के पुकार उठता हूँ

कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम

और तो क्या था बेचने के लिए

और तो क्या था बेचने के लिए

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

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