मोहब्बत पर चित्र/छाया शायरी

मोहब्बत पर ये शायरी

आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद

किस से जा कर माँगिये दर्द-ए-मोहब्बत की दवा

मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद

इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से

मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन

शायद इसी का नाम मोहब्बत है 'शेफ़्ता'

ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है

ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है

बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम

मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त

मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त

वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे

वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे

सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें

हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे

अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ

तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

कोई समझे तो एक बात कहूँ

बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो

ज़िंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़

कोई समझे तो एक बात कहूँ

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