वहम पर चित्र/छाया शायरी

वहम एक ज़हनी कैफ़ियत है

और ख़याल-ओ-फ़िक्र का एक रवैया है जिसे यक़ीन की मुतज़ाद कैफ़ियत के तौर पर देखा जाता है। इन्सान मुसलसल ज़िंदगी के किसी न किसी मरहले में यक़ीन-ओ-वहम के दर्मियान फंसा होता है। ख़याल-ओ-फ़िक्र के ये वो इलाक़े हैं जिनसे वास्ता तो हम सब का है लेकिन हम उन्हें लफ़्ज़ की कोई सूरत नहीं दे पाते। ये शायरी पढ़िए और उन लफ़्ज़ों में बारीक ओ नामालूम से एहसासात की जलवागरी देखिए।

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

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