पान शॉप
कहानी में अपनी महबूब चीज़ों को गिरवी रख कर पैसे उधार लेने वालों के शोषण को बयान किया गया है। बेगम बाज़ार में फ़ोटो स्टूडियो, जापानी गिफ्ट शॉप और पान शॉप पास-पास ही हैं। पहली दो दुकानों पर नाम के अनुसार ही काम होता और तीसरी दुकान पर पान बेचने के साथ ही क़ीमती चीज़ों को गिरवी रख कर पैसे भी उधार दिए जाते हैं। इस काम के लिए फ़ोटो स्टूडियो का मालिक और जापानी गिफ्ट शॉप वाला पान वाले की हमेशा बुराई करते हैं। जब एक रोज़ उन्हें पैसों की ज़रूरत होती है तो वे दोनों भी एक-दूसरे से छुपकर पान वाले के यहाँ अपनी क़ीमती चीज़ें गिरवी रखते हैं।
राजिंदर सिंह बेदी
आधे चेहरे
कहानी एक ऐसे नौजवान के गिर्द घूमती है जो मिस आईडेंटिटी का शिकार है। एक दिन वह एक डॉक्टर के पास आता है और उसे अपनी हालत बताते हुए कहता है कि जब वह मोहल्ले में होता है तो हमीद होता है मगर जब वह कॉलेज में जाता है तो अख़्तर हो जाता है। अपनी यह कैफ़ियत उसे कभी पता न चलती अगर बीते दिन एक हादसा न होता। तभी से उसकी समझ नहीं आ रहा है कि वह कौन है? वह डॉक्टर से सवाल करता है कि वह उसे बताए कि वह हक़ीक़त में क्या है?
मुमताज़ मुफ़्ती
चिड़िया चिड़े की कहानी
एक चिड़िया और चिड़े की मार्फ़त यह कहानी इंसानी समाज में मर्द और औरत के रिश्तों के बारे में बात करती है। चिड़ा अपने हिस्से की कहानी सुनाता हुआ कहता है कि मर्द कभी भी एक जगह टिक कर नहीं रहता। वह एक के बाद दूसरी औरत के पास भटकता रहता है। वहीं चिड़िया समाज में औरत की हालत को बयान करती है।
सज्जाद हैदर यलदरम
अन्न-दाता
बंगाल में जब अकाल पड़ा तो शुरू में हुक्मरानों ने इसे क़हत मानने से ही इंकार कर दिया। वे हर रोज़ शानदार दावतें उड़ाते और उनके घरों के सामने भूख से बेहाल लोग दम तोड़ते रहते। वह भी उन्हीं हुक्मरानों में से एक था। शुरू में उसने भी दूसरों की तरह समस्या से नज़र चुरानी चाही। मगर फिर वह उनके लिए कुछ करने के लिए उतावला हो गया। कई योजनाएँ बनाई और उन्हें अमल में लाने के लिए संघर्ष करने लगा।
कृष्ण चंदर
कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
कृष्ण चंदर
भीक
एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो पहाड़ों पर सैर करने गया है। वहाँ उसे एक ग़रीब लड़की मिलती है, जिसे वह अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र देता है। मगर अगले दिन उम्मीद से भरी जब वह लड़की अपने छोटे भाई-बहनों को लेकर डाक-बंगले पर पहुँचती है तो एक साथ इतने बच्चों को देखकर वह उसे नौकरी पर रखने से मना कर देता है। इंकार सुनकर लड़की जब वापस जाने लगती है तो वह उसे दो रूपये दे देता है।
हयातुल्लाह अंसारी
गूँदनी
दोहरी ज़िंदगी जीते एक ऐसे शख़्स की कहानी जो चाहकर भी खुलकर अपने एहसासात का इज़हार नहीं कर पाता। मिर्ज़ा बिर्जीस का ख़ानदान किसी ज़माने में बहुत दौलतमंद था लेकिन इस वक़्त इस ख़ानदान की हालत दिगरगूँ है। इसके बावजूद मिर्ज़ा उसी शान-ओ-शौकत और ठाट-बाट के साथ रहने का ढोंग करता है। एक रोज़ बाज़ार में कुछ ख़रीदारी करते हुए भिखारी ने उससे खाना माँगा तो उसने उसे झिड़क दिया। मगर शाम को सिनेमा में एक फ़िल्म देखते हुए जब उसने एक बुढ़िया को भीख माँगते देखा तो वह रो दिया।
ग़ुलाम अब्बास
साढ़े तीन आने
इस कहानी में सत्ताधारी और शासक वर्ग पर शदीद तंज़ किया गया है। रिज़वी जेल से बाहर आने के बाद एक कैफे़ में बैठ कर फ़ल्सफ़ियाना अंदाज़ में सामाजिक अन्याय की बात करता है कि किस तरह ये समाज एक-एक ईमानदार इंसान को चोर और क़ातिल बना देता है। इस सिलसिले में वो फग्गू भंगी का ज़िक्र करता है जिसने बड़ी ईमानदारी से उसके दस रुपये उस तक पहुँचाए थे। ये वही फग्गू भंगी है जिसको वक़्त पर तनख़्वाह न मिलने की वजह से साढे़ तीन आने चोरी करने पड़ते हैं और उसे एक साल की सज़ा मिलती है।
सआदत हसन मंटो
जब मैं छोटा था
बच्चों की नफ़्सियात पर मब्नी कहानी है। बच्चों के सामने बड़े जब अख़लाक़-ओ-आदत संवारने के लिए अपने बचपन की वाक़िआत को सुनाते हैं तो उन वाक़िआत में उनकी छवि एक नेक और शरीफ़ बच्चे की होती है। असल में ऐसा होता नहीं है, लेकिन जान बूझ कर ये झूठ बच्चों की नफ़्सियात पर बुरा असर डालती है। इस कहानी में एक बाप अपने बेटे को बचपन में की गई चोरी की वाक़िआ सुनाता है और बताता है कि उसने दादी के सामने क़बूल कर लिया था और दादी ने माफ़ कर दिया था। लेकिन बच्चा एक दिन जब पैसे उठा कर कुछ सामान ख़रीद लेता है और अपनी माँ के सामने चोरी को क़बूल नहीं करता तो माँ इतनी पिटाई करती है कि बच्चा बीमार पड़ जाता है। बच्चा अपने बाप से चोरी के वाक़िआ को सुनाने की फ़र्माइश करता है। बाप उसकी नफ़्सियात समझ लेता है और कहता है बेटा उठो और खेलो, मैंने जो चोरी की थी उसे आज तक तुम्हारी दादी के सामने क़बूल नहीं किया।
राजिंदर सिंह बेदी
तरक़्क़ी पसंद
तंज़-ओ-मिज़ाह के अंदाज़ में लिखी गई यह कहानी तरक्क़ी-पसंद अफ़साना-निगारों पर भी चोट करता है। जोगिंदर सिंह एक तरक्क़ी-पसंद कहानी-कार है जिसके यहाँ हरेंद्र सिंह आकर डेरा डाल देता है और निरंतर अपनी कहानियाँ सुना कर बोर करता रहता है। एक दिन अचानक जोगिंदर सिंह को एहसास होता है कि वो अपनी बीवी की हक़-तल्फ़ी कर रहा है। इसी ख़्याल से वो हरेंद्र से बाहर जाने का बहाना करके बीवी से रात बारह बजे आने का वादा करता है। लेकिन जब रात में जोगिंदर अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक देता है तो उसकी बीवी के बजाय हरेंद्र दरवाज़ा खोलता है और कहता है जल्दी आ गए, आओ, अभी एक कहानी मुकम्मल की है, इसे सुनो।
सआदत हसन मंटो
रौग़नी पुतले
राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर बात करती कहानी, जो शॉपिंग आर्केड में रखे रंगीन पुतलों के गिर्द घूमती है। जिनके आस-पास सारा दिन तरह-तरह के फै़शन परस्त लोग और नौजवान लड़के-लड़कियाँ घूमते रहते हैं। मगर रात होते ही वे पुतले आपस में गुफ़्तगू करते हुए मौजूदा हालात पर अपनी राय ज़ाहिर करते हैं। सुबह में आर्केड का मालिक आता है और वह कारीगरों को पूरे शॉपिंग सेंटर और तमाम पुतलों को पाकिस्तानी रंग में रंगने का हुक्म सुनाता है।
मुमताज़ मुफ़्ती
देख कबीरा रोया
कबीर के माध्यम से यह कहानी हमारे समाज की उस स्वभाव को बयान करती है जिसके कारण लोग हर सुधावादी व्यक्ति को कम्युनिस्ट, अराजकतावादी क़रार दे देते हैं। समाज में हो रही बुराइयों को देख-देखकर कबीर रोता है और लोगों को उन बुराइयों को करने से रोकता है। परंतु हर जगह उसका मज़ाक़ उड़ाया जाता है। लोग उसे बुरा भला कहते हैं और मार कर भगा देते हैं।
सआदत हसन मंटो
बहरूपिया
हर पल रूप बदलते रहने वाले एक बहरूपिये की कहानी, जिसमें उसका अपना असली रूप कहीं खोकर रह गया है। वह हफ़्ते में एक-दो बार मोहल्ले में आया करता था। देखने में काफ़ी आकर्षक था और हर किसी से मज़ाक़ किया करता था। एक दिन एक छोटे लड़के ने उसे देखा तो वह उससे ख़ासा प्रभावित हुआ और फिर अपने दोस्त को साथ लेकर वे उसका पीछा करता हुआ, उसके असली रूप की तलाश में निकल पड़ा।
ग़ुलाम अब्बास
सजदा
एक बहुत शरारती और हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति हमीद की कहानी है। हमीद एक मिलनसार इंसान था। अपने दोस्तों से बहुत बे-तक़ल्लुफी से मिला करता था। एक दिन उसने शरारत में अपने एक मौलाना दोस्त को जिन पिला दी। अपनी इस हरकत पर मौलाना की प्रतिक्रिया देखकर उसे बहुत कष्ट हुआ। उसने ख़ुदा से तौबा की और माफ़ी के लिए गली के फ़र्श पर ही सजदा कर लिया। थोड़ी देर बाद उसका वही मौलाना दोस्त शराब की कई बोतलें लेकर आया और उसके साथ बैठकर पीने लगा। उसका यह व्यवहार देखकर हमीद को बहुत दुख हुआ और उसे अपना वो सजदा व्यर्थ लगने लगा।
सआदत हसन मंटो
छोकरी की लूट
कहानी में शादी जैसी पारंपरिक संस्कार को एक दूसरे ही रूप में पेश किया गया है। बेटियों के जवान होने पर माँएं अपनी छोकरियों की लूट मचाती हैं, जिससे उनका रिश्ता पक्का हो जाता है। प्रसादी की बहन की जब लूट मची तो उसे बड़ा गु़स्सा आया, क्योंकि रतना खू़ब रोई थी। बाद में उसने देखा कि रतना अपने काले-कलूटे पति के साथ खु़श है तो उसे एहसास होता है कि रतना की शादी ज़बरदस्ती नहीं हुई थी बल्कि वह तो खु़द से अपना लूट मचवाना चाहती थी।
राजिंदर सिंह बेदी
पतझड़ की आवाज़
यह कहानी की मरकज़ी किरदार तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी के तजुर्बात और ज़ेहनियत की अक्कासी करती है। तनवीर एक अच्छे परिवार की सुशिक्षित लड़की है लेकिन ज़िंदगी जीने का फ़न उसे नहीं आता। उसकी ज़िंदगी में एक के बाद एक तीन मर्द आते हैं। पहला मर्द खु़श-वक़्त सिंह है जो ख़ुद से तनवीर फ़ातिमा की ज़िंदगी में दाख़िल होता है। दूसरा मर्द फ़ारूक़, पहले खु़श-वक़्त सिंह के दोस्त की हैसियत से उससे परिचित होता है और फिर वही उसका सब कुछ बन जाता है। इसी तरह तीसरा मर्द वक़ार हुसैन है जो फ़ारूक़ का दोस्त बनकर आता है और तनवीर फ़ातिमा को दाम्पत्य जीवन की ज़ंजीरों में जकड़ लेता है। तनवीर फ़ातिमा पूरी कहानी में सिर्फ़ एक बार ही अपने भविष्य के बारे में कोई फ़ैसला करती है, खु़श-वक़्त सिंह से शादी न करने का। और यही फ़ैसला उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित होता है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी में आए उस पहले मर्द खु़श-वक़्त सिंह को कभी भूल नहीं पाती।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
कतबा
शरीफ़ हुसैन एक तीसरे दर्ज का क्लर्क है। उन दिनों उसकी बीवी मायके गई हुई होती है जब वह एक दिन शहर के बाज़ार जा पहुंचता है और वहाँ न चाहते हुए भी एक संग-मरमर का टुकड़ा ख़रीद लेता है। टुकड़ा बहुत खू़बसूरत है। एक रोज़ वह संग-तराश के पास जाकर उस पर अपना नाम खुदवा लेता है और सोचता है कि जब उसकी तरक़्क़ी हो जाएगी तो वह अपना घर ख़रीद लेगा और इस नेम प्लेट को उसके बाहर लगाएगा। सारी ज़िंदगी गुज़र जाती है लेकिन उसकी यह ख़्वाहिश कभी पूरी नहीं होती। आख़िर में यही कत्बा उसका बेटा उसकी क़ब्र पर लगवा देता है।
ग़ुलाम अब्बास
हड्डियाँ और फूल
"हासिल की उपेक्षा और ला-हासिल के लिए गिले-शिकवे की इंसानी प्रवृति को इस कहानी में उजागर किया गया है। इस कहानी में मियाँ-बीवी के बीच शक-ओ-संदेह के नतीजे में पैदा होने वाली तल्ख़ी को बयान किया गया है। मुलम एक चिड़चिड़ा मोची है, गौरी उसकी ख़ूबसूरत बीवी है, मुलम के ज़ुल्म-ओ-ज़्यादती से आजिज़ आकर गौरी अपने मायके चली जाती है तो मुलम को अपनी ज़्यादतियों का एहसास होता है और वो बदहवासी की हालत में अजीब-अजीब हरकतें करता है, लेकिन जब वही गौरी वापस आती है तो स्टेशन पर भीड़ की वजह से एक अजनबी से टकरा जाती है और मुलम ग़ुस्से से हकलाते हुए कहता है, ये नए ढंग सीख आई हो... फिर आ गईं मेरी जान को दुख देने।"
राजिंदर सिंह बेदी
अब और कहने की ज़रुरत नहीं
उचित फ़ीस लेकर दूसरों की जगह जेल की सज़ा काटने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जो लोगों से पैसे ले कर उनके किए जुर्म को अपने सिर ले लेता है और जेल की सज़ा काटता है। उन दिनों जब वह जेल की सज़ा काट कर आया था तो कुछ ही दिनों बाद उसकी माँ की मौत हो गई थी। उस वक़्त उसके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह माँ का कफ़न-दफ़न कर सके। तभी उसे एक सेठ का बुलावा आता है, पर वह जेल जाने से पहले अपनी माँ को दफ़ानाना चाहता है। सेठ इसके लिए उसे मना करता है। जब वह सेठ से बात तय कर के अपने घर लौटता है तो सेठ की बेटी उसके आने से पहले ही उसकी माँ के कफ़न-दफ़न का इंतज़ाम कर चुकी होती है।
सआदत हसन मंटो
एवलांश
"दहेज़ की लानत पर लिखी गई कहानी है। कहानी का रावी एक वाश लाइन इंस्पेक्टर है। आर्थिक परेशानी के कारण उसकी दो बेटियों के रिश्ते तय नहीं हो पा रहे हैं। रावी के कुन्बे में छः लोग हैं, जिनकी ज़िम्मेदारियों का बोझ उसके काँधे पर है। दहेज़ पूरा करने के लिए वो रिश्वतें भी लेता है लेकिन फिर भी लड़के वालों की फ़रमाइशें पूरी होने का कोई इम्कान नज़र नहीं आता। रावी दुख से मुक्ति पाने के लिए अख़बार में पनाह लेता है। एक दिन उसने पढ़ा कि एवालांश आ जाने की वजह से एक पार्टी दब कर रह गई। इसी बीच रिश्वत के इल्ज़ाम में रावी नौकरी से निकाल दिया जाता है। उसी दिन उसकी छोटी बेटी दौड़ती हुई आती है और बताती है एक रेस्क्यू पार्टी ने सब लोगों को बचा लिया। रावी अपनी बेटी से पूछता है, क्या कोई रेस्क्यू पार्टी आएगी... रुकू़... क्या वो हमेशा आती है?"
राजिंदर सिंह बेदी
बुढ़ापा
एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो एक वेश्या से मोहब्बत के कारण अपनी पत्नी को तलाक़ दे देता है। उसके इस तलाक़ में मस्जिद का मौलवी दोनों पक्षों को खू़ब लूटता है। पचास साल बाद जब वह दोबारा उस गाँव में आता है तो मौलवी उसे सारी बात सच-सच बता देता है। मौलवी का बयान सुनकर वह अपनी पत्नी की क़ब्र पर जाता है, और चाहकर भी रो नहीं पाता।