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व्यंग्य पर उद्धरण

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पहाड़ और अधेड़ औरत दर अस्ल ऑयल पेंटिंग की तरह होते हैं, उन्हें ज़रा फ़ासले से देखना चाहिए।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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शरीफ़ घरानों में आई हुई दुल्हन और जानवर तो मर कर ही निकलते हैं।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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उम्र-ए-तबीई तक तो सिर्फ़ कव्वे, कछुवे, गधे और वो जानवर पहुंचते हैं जिनका खाना शर्अ़न हराम है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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मर्द की पसंद वो पुल-सिरात है जिस पर कोई मोटी औरत नहीं चल सकती।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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आप राशी, ज़ानी और शराबी को हमेशा ख़ुश-अख़्लाक़, मिलनसार और मीठा पाएँगे। इस वास्ते कि वह नख़्वत, सख़्त गिरी और बद-मिज़ाजी अफोर्ड ही नहीं कर सकते।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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जब आदमी को यह मालूम हो कि उसकी नाल कहाँ गड़ी है और पुरखों की हड्डियां कहाँ दफ़्न हैं तो मनी प्लांट की तरह हो जाता है। जो मिट्टी के बग़ैर सिर्फ़ बोतलों में फलता-फूलता है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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ग़ालिब दुनिया में वाहिद शायर है जो समझ में आए तो दुगना मज़ा देता है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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ताअन-ओ-तशनीअ से अगर दूसरों की इस्लाह हो जाती तो बारूद ईजाद करने की ज़रूरत पेश आती।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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हमारा अक़ीदा है कि जिसे माज़ी याद नहीं रहता उसकी ज़िंदगी में शायद कभी कुछ हुआ ही नहीं, लेकिन जो अपने माज़ी को याद ही नहीं करना चाहता वो यक़ीनन लोफ़र रहा होगा।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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घोड़े और औरत की ज़ात का अंदाज़ा उसकी लात और बात से किया जाता है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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मुसलमान लड़के हिसाब में फ़ेल होने को अपने मुसलमान होने की आसमानी दलील समझते हैं।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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औरत की एड़ी हटाओ तो उसके नीचे से किसी किसी मर्द की नाक ज़रूर निकलेगी।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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शेर, हवाई जहाज़, गोली, ट्रक और पठान रिवर्स गियर में चल ही नहीं सकते।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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बे-सबब दुश्मनी और बदसूरत औरत से इश्क़ हक़ीक़त में दुश्मनी और इश्क़ की सबसे न-खालिस क़िस्म है। यह शुरू ही वहां से हुई हैं जहाँ अक़्ल ख़त्म हो जावे है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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इन्सान वो वाहिद हैवान है जो अपना ज़हर दिल में रखता है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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प्राइवेट अस्पताल और क्लीनिक में मरने का सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि मरहूम की जायदाद, जमा-जत्था और बैंक बैलेंस के बंटवारे पर पसमानदगान में ख़ून-ख़राबा नहीं होता, क्योंकि सब डॉक्टरों के हिस्से में जाता हैं।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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हमारी गायकी की बुनियाद तब्ले पर है, गुफ़्तगू की बुनियाद गाली पर।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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बंदर में हमें इसके इलावा और कोई ऐब नज़र नहीं आता कि वो इन्सान का जद्द-ए-आला है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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आज़ाद शायरी की मिसाल ऐसी है जैसे बग़ैर नेट टेनिस खेलना।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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मैंने कभी पुख़्ताकार मौलवी या मेज़ाह निगार को महज़ तक़रीर-ओ-तहरीर की पादाश में जेल जाते नहीं देखा।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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बादशाहों और मुतलक़-उल-अनान हुकमुरानों की मुस्तक़िल और दिल-पसंद सवारी दर-हक़ीक़त रिआया होती है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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इस ज़माने में सौ फ़ी सद सच्च बोल कर ज़िंदगी करना ऐसा ही है जैसे बज्री मिलाए बग़ैर सिर्फ सिमेंट से मकान बनाना।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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मुसलमान हमेशा एक अमली क़ौम रहे हैं। वो किसी ऐसे जानवर को मुहब्बत से नहीं पालते जिसे ज़िब्ह कर के खा ना सकें।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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मिडिल क्लास ग़रीबी की सबसे क़ाबिल-ए-रहम और ला-इलाज क़िस्म वो है जिसमें आदमी के पास कुछ हो लेकिन उसे किसी चीज़ की कमी महसूस हो।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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