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कभी थे चोर ग़ुंडों के बड़े सरदार मुर्ग़ी के

जौहर सीवानी

कभी थे चोर ग़ुंडों के बड़े सरदार मुर्ग़ी के

जौहर सीवानी

MORE BYजौहर सीवानी

    कभी थे चोर ग़ुंडों के बड़े सरदार मुर्ग़ी के

    बने फिरते हैं अब तो क़ौम के ग़म-ख़्वार मुर्ग़ी के

    उड़ा करती थी मोटर जब से हारे हैं इलेक्शन में

    नज़र आते हैं पैदल ही सर-ए-बाज़ार मुर्ग़ी के

    हमें तल्क़ीन आलू बाजरा खाने की है लेकिन

    किया करते हैं मक्खन टोस्ट से इफ़्तार मुर्ग़ी के

    किया करते हैं वा'दे तो हज़ारों वोट से पहले

    मगर लगते हैं करने बा'द में इंकार मुर्ग़ी के

    ज़बाँ कच्ची है इन की ये बताना है बहुत मुश्किल

    कि कर बैठेंगे कब इंकार कब इक़रार मुर्ग़ी के

    ग़रीबी क्या मिटाएँगे ग़रीबों को मिटा देंगे

    किया करते हैं काले धन का ख़ुद ब्योपार मुर्ग़ी के

    अगर पूछें तो ये हज़रत पनामा विलिस माँगेंगे

    मगर पीते हैं घर में चार ही मीनार मुर्ग़ी के

    नसीहत अपनी पार्टी से वफ़ादारी की है लेकिन

    गिरा कर ख़ुद बनाया करते हैं सरकार मुर्ग़ी के

    ज़रूरत भूकी जनता को फ़क़त राशन की है लेकिन

    दिया करते हैं भाषण ही सर-ए-बाज़ार मुर्ग़ी के

    बने कल तक सवारी इक सवारी वाले रिक्शे का

    उड़ाते फिर रहे हैं आज फ़ीयट कार मुर्ग़ी के

    हर इक दिन जबकि उदघाटन से उन का वास्ता ठहरा

    मनाएँ क्यों नहीं हर रोज़ ही इतवार मुर्ग़ी के

    पचा जाते हैं कैसे सात मुर्गों को भी रोज़ाना

    त'अज्जुब है नहीं पड़ते कभी बीमार मुर्ग़ी के

    छटा हैं फ़ेल 'जौहर' मगर हाथों में इंग्लिश का

    हमेशा ले के चलते हैं कोई अख़बार मुर्ग़ी के

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