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अरशद अब्दुल हमीद

प्रसिद्ध शायर और आलोचक

प्रसिद्ध शायर और आलोचक

अरशद अब्दुल हमीद

ग़ज़ल 37

अशआर 19

ये इंतिज़ार नहीं शम्अ है रिफ़ाक़त की

इस इंतिज़ार से तन्हाई ख़ूब-सूरत है

कुछ सितारे मिरी पलकों पे चमकते हैं अभी

कुछ सितारे मिरे सीने में समाए हुए हैं

ज़मीं के पास किसी दर्द का इलाज नहीं

ज़मीन है कि मिरे अहद की सियासत है

दिल को मालूम है क्या बात बतानी है उसे

उस से क्या बात छुपानी है ज़बाँ जानती है

सर-बुलंदी मिरी तंहाई तक पहुँची है

मैं वहाँ हूँ कि जहाँ कोई नहीं मेरे सिवा

दोहा 3

किस किस को समझाएगा ये नादानी छोड़

चेहरे को सुंदर बना आईना मत तोड़

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ख़ुदा करे ये रौशनी पड़े कभी माँद

गालों पर वो लिख गया आधे आधे चाँद

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सावन आते ही बढ़े आवाज़ों का ज़ोर

ख़ुशबू चीख़े डाल पर रंग मचाएँ शोर

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