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अज़ीज़ हैदराबादी

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अज़ीज़ हैदराबादी के शेर

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ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता

ख़ामुशी इख़्तियार करता हूँ

उस ने सुन कर बात मेरी टाल दी

उलझनों में और उलझन डाल दी

गिन रहा हूँ हर्फ़ उन के अहद के

मुझ को धोका दे रही है याद क्या

दिल ठिकाने हो तो सब कुछ है अज़ीज़

जी बहल जाता है सहरा क्यूँ हो

हुस्न है दाद-ए-ख़ुदा इश्क़ है इमदाद-ए-ख़ुदा

ग़ैर का दख़्ल नहीं बख़्त है अपना अपना

दुनिया की रविश देखी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता में

बनती है ये मुश्किल से बिगड़ती है ज़रा में

अयाँ या निहाँ इक नज़र देख लेते

किसी सूरत उन को मगर देख लेते

मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में

पीता हूँ मैं शराब मिला कर गुलाब में

शीशे खुले नहीं अभी साग़र चले नहीं

उड़ने लगी परी की तरह बू शराब की

बहुत कुछ देखना है आगे आगे

अभी दिल ने मिरे देखा ही क्या है

हम को सँभालता कोई क्या राह-ए-इश्क़ में

खा खा के ठोकरें हमीं आख़िर सँभल गए

दर्द सहने के लिए सदमे उठाने के लिए

उन से दिल अपना मुझे वापस तलब करना पड़ा

आँखों में तिरी शक्ल है दिल में है तिरी याद

आए भी तो किस शान से फ़ुर्क़त के दिन आए

देखता हूँ उन की सूरत देख कर

धूप में तारे नज़र आते हैं मुझे

अभी कुछ है अभी कुछ है अभी कुछ

तिरी काफ़िर-नज़र क्या जाने क्या है

आराम अपने बस का है बस मैं नहीं है किया

गुलशन में क्या धरा है क़फ़स में नहीं है क्या

सोहबत-ए-ग़ैर से बचिए बचिए

देखिए देखिए रुस्वाई है

वो ये कह कर दाग़ देते हैं मुझे

फूल से पहले समर आते नहीं

नाले हैं आहें हैं रोना तड़पना

बे-ख़ुद हूँ तिरी याद में फ़ुर्सत के दिन आए

धड़कते हुए दिल के हम-राह मेरे

मिरी नब्ज़ भी चारा-गर देख लेते

कोई रुस्वा कोई सौदाई है

इक जहाँ आप का शैदाई है

वो सुनें या सुनें नाला-ओ-फ़रियाद 'अज़ीज़'

आप हरगिज़ करें तर्क तक़ाज़ा अपना

वो अब्र घिरा झूम के रहमत के दिन आए

पीने के पिलाने के मसर्रत के दिन आए

नस्रीं में ये महक है ये नस्तरन में है

बू-ए-गुल-ए-मुराद तिरे पैरहन में है

दम-ए-तकल्लुम किसी के आगे हम अपने दिल को भी देते हौके

मिलाते चुन चुन के लफ़्ज़ ऐसे सवाल गोया जवाब होता

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