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फ़ना बुलंदशहरी

फ़ना बुलंदशहरी

ग़ज़ल 48

अशआर 5

इस जहाँ में नहीं कोई अहल-ए-वफ़ा

'फ़ना' इस जहाँ से किनारा करो

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आग़ाज़ तो अच्छा था 'फ़ना' दिन भी भले थे

फिर रास मुझे इश्क़ का अंजाम आया

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उठा पर्दा तो महशर भी उठेगा दीदा-ए-दिल में

क़यामत छुप के बैठी है नक़ाब-ए-रू-ए-क़ातिल में

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क्या भूल गए हैं वो मुझे पूछना क़ासिद

नामा कोई मुद्दत से मिरे काम आया

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'फ़ना' मेरी मय्यत पे कहते हैं वो

आप ने अपना वा'दा वफ़ा कर दिया

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