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हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल्ली, भारत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ग़ज़ल 17

अशआर 22

रौशनी तेज़ करो चाँद सितारो अपनी

मुझ को मंज़िल पे पहुँचना है सहर होने तक

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अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या

ग़ैर के गुलशन से सौ दर्जा भला अपना क़फ़स

तन को मिट्टी नफ़स को हवा ले गई

मौत को क्या मिला मौत क्या ले गई

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हाल बीमार का पूछो तो शिफ़ा मिलती है

या'नी इक कलमा-ए-पुर्सिश भी दवा होता है

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देखूँगा किस क़दर तिरी रहमत में जोश है

परवरदिगार मुझ को गुनाहों का होश है

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