हिज्र नाज़िम अली ख़ान के शेर
उस बज़्म में जो कुछ नज़र आया नज़र आया
अब कौन बताए कि हमें क्या नज़र आया
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कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हद
कि बे-गुनाह से अच्छा गुनाह-गार रहा
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टैग : गुनाह
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आया भी कोई दिल में गया भी कोई दिल से
आना नज़र आया न ये जाना नज़र आया
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कभी ये फ़िक्र कि वो याद क्यूँ करेंगे हमें
कभी ख़याल कि ख़त का जवाब आएगा
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टैग : ख़त
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कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा
कि रात भर दिल-ए-ग़म-दीदा बे-क़रार रहा
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टैग : बेक़रारी
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हाँ हाँ तुम्हारे हुस्न की कोई ख़ता नहीं
मैं हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ से दीवाना हो गया
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क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
तुम दिल में हो तो दर्द हमारे जिगर में है
अक्स से अपने वो यूँ कहते हैं आईने में
आप अच्छे हैं मगर आप से अच्छा मैं हूँ
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मुझे वो याद करते हैं ये कह कर
ख़ुदा बख़्शे निहायत बा-वफ़ा था
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टैग : याद
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सीरत किसी की ख़ूब है सूरत किसी की ख़ूब
कोई हमारे दिल में है कोई नज़र में है
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ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का
लेकिन ये देखना है कि मिट्टी कहाँ की है
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टैग : मौत
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