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इब्न-ए-मुफ़्ती के शेर

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कैसा जादू है समझ आता नहीं

नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के

इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना

इस तरह तो कोई अपनों से ख़फ़ा होता नहीं

जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन फ़लक

अब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी

कर बुरा तो भला नहीं होता

कर भला तो बुरा नहीं होता

हम ने देखा है रू-ब-रू उन के

आईना आईना नहीं होता

तेरे ख़्वाबों की लत लगी जब से

रात का इंतिज़ार रहता है

दिल की बातों को दिल समझता है

दिल की बोली अजीब बोली है

दिल में सज्दे किया करो 'मुफ़्ती'

इस में पर्वरदिगार रहता है

यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं

कोई तुम सा नज़र नहीं आया

अब तो कर डालिए वफ़ा उस को

वो जो वादा उधार रहता है

हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा

जिस ने ये गेसू सँवारे आप के

याद का क्या है गई फिर से

आँख का क्या है फिर से रो ली है

फिर से वो लौट कर नहीं आया

फिर दुआ में असर नहीं आया

ये कारोबार भी कब रास आया

ख़सारे में रहे हम प्यार कर के

सब निशाने अगर सहीह होते

तीर कोई ख़ता नहीं होता

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