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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Iqbal Safi Puri's Photo'

इक़बाल सफ़ी पूरी

1916 - 1999

इक़बाल सफ़ी पूरी के शेर

चश्म-ए-साक़ी मुझे हर गाम पे याद आती है

रास्ता भूल जाऊँ कहीं मयख़ाने का

कौन जाने कि इक तबस्सुम से

कितने मफ़्हूम-ए-ग़म निकलते हैं

कोई समझाए कि क्या रंग है मयख़ाने का

आँख साक़ी की उठे नाम हो पैमाने का

मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया

जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने

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