महशर इनायती के शेर
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से
चले भी आओ मिरे जीते-जी अब इतना भी
न इंतिज़ार बढ़ाओ कि नींद आ जाए
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टैग : इंतिज़ार
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किसी की बज़्म के हालात ने समझा दिया मुझ को
कि जब साक़ी नहीं अपना तो मय अपनी न जाम अपना
हर एक बात ज़बाँ से कही नहीं जाती
जो चुपके बैठे हैं कुछ उन की बात भी समझो
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टैग : ख़ामोशी
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बड़ी तवील है 'महशर' किसी के हिज्र की बात
कोई ग़ज़ल ही सुनाओ कि नींद आ जाए
न ग़ैर ही मुझे समझो न दोस्त ही समझो
मिरे लिए ये बहुत है कि आदमी समझो
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क़सम जब उस ने खाई हम ने ए'तिबार कर लिया
ज़रा सी देर ज़िंदगी को ख़ुश-गवार कर लिया
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टैग : वादा
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लब पे इक नाम हमेशा की तरह
और क्या काम हमेशा की तरह
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न बातें करे है न देखा करे है
मगर मेरे बारे में सोचा करे है
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सुनते थे 'महशर' कभी पत्थर भी हो जाता है मोम
आज वो आए तो पलकों को भिगोना पड़ गया
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मैं दीवाना सही लेकिन वो ख़ुश-क़िस्मत हूँ ऐ 'महशर'
कि दुनिया की ज़बाँ पर आ गया है आज नाम अपना
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इक उन्हें देखो इक मुझे देखो
वक़्त कितना करिश्मा-कार सा है
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अगर अपने दिल-ए-बेताब को समझा लिया मैं ने
तो ये काफ़िर निगाहें कर सकेंगी इंतिज़ाम अपना
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सब ने बना बना के तमाशा हमें तुम्हें
हैरत हुई जो ग़ौर से देखा हमें तुम्हें
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