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सिराज लखनवी

1894 - 1968 | लखनऊ, भारत

सिराज लखनवी

ग़ज़ल 32

नज़्म 2

 

अशआर 55

आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम

उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में

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कहाँ हैं आज वो शम-ए-वतन के परवाने

बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने

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हाँ तुम को भूल जाने की कोशिश करेंगे हम

तुम से भी हो सके तो आना ख़याल में

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आप के पाँव के नीचे दिल है

इक ज़रा आप को ज़हमत होगी

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ये आधी रात ये काफ़िर अंधेरा

सोता हूँ जागा जा रहा है

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पुस्तकें 4

 

चित्र शायरी 3

 

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