Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

सोने की अंगूठी

सआदत हसन मंटो

सोने की अंगूठी

सआदत हसन मंटो

MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    "मियाँ-बीवी की नोक झोंक पर मब्नी मज़ाहिया कहानी है जिसमें बीवी शौहर को बड़े बालों की वजह से लानत-मलामत करती है। जब शौहर सैलून जाने के लिए तैयार हो जाता है तो कहती है अगर पैसे हों तो ज़रा एक सोने की अँगूठी ले आईएगा, मुझे एक सहेली की सालगिरह में जाना है।"

    “छत्ते का छत्ता हो गया आपके सर पर... मेरी समझ में नहीं आता कि बाल कटवाना कहाँ का फ़ैशन है?”

    “फ़ैशन-वैशन कुछ नहीं, तुम्हें अगर बाल कटवाने पड़ें तो क़दर-ए-आफ़ियत मालूम हो जाये।”

    “मैं क्यों बाल कटवाऊँ?”

    “क्या औरतें कटवाती नहीं? हज़ारों बल्कि लाखों ऐसी मौजूद हैं जो अपने बाल कटवाती हैं, बल्कि अब तो ये फ़ैशन भी चल निकला है कि औरतें मर्दों की तरह छोटे छोटे बाल रखती हैं।”

    “ला’नत है उन पर।”

    “किस की?”

    “ख़ुदा की और किस की। बाल तो औरत की ज़ीनत हैं, समझ में नहीं आता कि ये औरतें क्यों अपने बाल मर्दों की मानिंद बनवा लेती हैं, फिर पतलूनें पहनती हैं। रहे इनका वजूद दुनिया के तख़्ते पर।”

    “वजूद तो ख़ैर आपकी इस बददुआ से उन नेक बख़्त औरतों का दुनिया के इस तख़्ते से किसी हालत में भी ग़ायब नहीं होगा। वैसे एक चीज़ से मुझे तुमसे कुल्ली इत्तफ़ाक़ है कि औरत को पतलून जिसे सलेक्स कहते हैं नहीं पहननी चाहिए और सिगरेट भी पीने चाहिऐं।”

    “और आप हैं कि दिन में पूरा एक डिब्बा फूंक डालते हैं।”

    “इसलिए कि मैं मर्द हूँ, मुझे इसकी इजाज़त है।”

    “किसने दी थी ये इजाज़त आपको? मैं अब आइन्दा से हर रोज़ सिर्फ़ एक डिबिया मंगा कर दिया करूंगी।”

    “और वो जो तुम्हारी सहेलियां आती हैं उनको सिगरेट कहाँ से मिलेंगे?”

    “वो कब पीती हैं?”

    “इतना सफ़ेद झूट बोला करो। उनमें से जब भी कोई आती है तुम मेरा सिगरेट का डिब्बा उठा कर अंदर ले जाती हो, साथ ही माचिस भी। आख़िर मुझे आवाज़ दे कर तुम्हें बुलाना पड़ता है और मेरा डिब्बा मुझे वापस मिलता है उसमें से पाँच-छः सिगरेट ग़ायब होते हैं।”

    “पाँच-छः सिगरेट, झूट तो आप बोल रहे हैं। वो तो बेचारियाँ मुश्किल से एक सिगरेट पीती हैं।”

    “एक सिगरेट पीने में उन्हें मुश्किल क्या महसूस होती है।”

    “मैं आपसे बहस करना नहीं चाहती। आपको तो और कोई काम ही नहीं, सिवाए बहस करने के।”

    “हज़ारों काम हैं, तुम कौन से हल चलाती हो, सारा दिन पड़ी सोई रहती हो।”

    “जी हाँ, आप तो चौबीस घंटे जागते और वज़ीफ़ा करते रहते हैं।”

    “वज़ीफ़े की बात ग़लत है, अलबत्ता मैं ये कह सकता हूँ कि मैं सिर्फ़ रात को छः घंटे सोता हूँ।”

    “और दिन को...?”

    “कभी नहीं, बस आँखें बंद कर के तीन-चार घंटे लेटा रहता हूँ कि इससे आदमी को बहुत आराम मिलता है, सारी थकन दूर हो जाती है।”

    “ये थकन कहाँ से पैदा होती है, आप कौन सी मज़दूरी करते हैं?”

    “मज़दूरी ही तो करता हूँ, सुबह-सवेरे उठता हूँ, अख़बार पढ़ता हूँ, एक नहीं सुपर? फिर नाश्ता करता हूँ, नहाता हूँ और फिर तुम्हारी रोज़मर्रा की चख़ चख़ के लिए तैयार हो जाता हूँ।”

    “ये मज़दूरी हुई, और आप ये तो बताईए कि रोज़मर्रा की चख़ चख़ का इल्ज़ाम कहाँ तक दरुस्त है?”

    “जहां तक उसे होना चाहिए, शुरू शुरू में, मेरा मतलब शादी के बाद दो बरस तक बड़े सुकून में ज़िंदगी गुज़र रही थी लेकिन फिर एक दम तुम पर कोई ऐसा दौरा पड़ा कि तुमने हर रोज़ मुझसे लड़ना-झगड़ना अपना मा’मूल बना लिया, पता नहीं इसकी वजह क्या है?”

    “वजह ही तो मर्दों की समझ से हमेशा बालातर रहती है। आपलोग समझने की कोशिश ही नहीं करते।”

    “मगर तुम समझने की मोहलत भी दो... हर रोज़ किसी किसी बात का शोशा छोड़ देती हो। भला आज क्या बात थी जिसपर तुमने इतना चीख़ना-चिल्लाना शुरू कर दिया।”

    “गोया ये कोई बात ही नहीं कि आपने पिछले छः महीनों से बाल नहीं कटवाए! अपनी अचकनों के कालर देखिए, मैले चीकट हो रहे हैं।

    “ड्राई क्लीन करा लूं?”

    “पहले अपना सर ड्राई कलीन कराइए, वहशत होती है अल्लाह क़सम आपके बालों को देख कर। जी चाहता है मिट्टी का तेल डाल कर उनको आग लगा दूं।”

    “ताकि मेरा ख़ातमा ही हो जाये, लेकिन मुझे तुम्हारी इस ख़्वाहिश पर कोई भी ए’तराज़ नहीं।लाओ बावर्चीख़ाने से मिट्टी के तेल की बोतल, आहिस्ता आहिस्ता मेरे सर में डालो और माचिस की तीली जला कर उसको आग दिखा दो... ख़स कम जहां पाक।”

    “ये काम आप ख़ुद ही कीजिए, मैंने आग लगाई तो आप यक़ीनन कहेंगे कि तुम्हें किसी काम का सलीक़ा नहीं।

    “ये तो हक़ीक़त है कि तुम्हें किसी बात का सलीक़ा नहीं। खाना पकाना नहीं जानती, सीना-पिरोना तुम्हें नहीं आता, घर की सफ़ाई भी तुम अच्छी तरह नहीं कर सकतीं, बच्चों की परवरिश है तो उस का तो अल्लाह ही हाफ़िज़ है।”

    “जी हाँ, बच्चों की परवरिश तो अब तक माशा अल्लाह, आप ही करते आए हैं, मैं तो बिल्कुल ही निकम्मी हूँ।”

    “मैं इस मुआ’मले में कुछ और नहीं कहना चाहता, तुम ख़ुदा के लिए इस बहस को बंद करो।”

    “मैं बहस कहाँ कर रही हूँ? आप तो मामूली बातों को बहस का नाम दे देते हैं।”

    “तुम्हारे नज़दीक ये मामूली बातें होंगी! तुमने मेरा दिमाग़ चाट लिया है। मेरे सर पर हमेशा इतने ही बाल रहे हैं और तुम अच्छी तरह जानती हो कि मुझे इतनी फ़ुर्सत नसीब नहीं होती कि हज्जाम के पास जाऊं।”

    “जी हाँ, आपको अपनी अय्याशियों से फ़ुर्सत ही कहाँ मिलती है?”

    “किन अय्याशियों से?”

    “आप काम क्या करते हैं, कहाँ मुलाज़िम हैं, क्या तनख़्वाह पाते हैं?”

    “मुलाज़मत क्या ज़रुरी है। मैं तो इसको बहुत बड़ी ला’नत समझता हूँ।”

    “आपको तो हर वो काम बहुत बड़ी ला’नत मालूम होता है जिसमें आपको मेहनत मशक़्क़त करनी पड़े।”

    “मैं क्या मेहनत मशक़्क़त नहीं करता? अभी पिछले दिनों ईंटें सप्लाई करने का मैंने जो ठेका लिया था, जानती हो मैंने दिन-रात एक कर दिया था।”

    “गधे काम कर रहे थे, आप तो सोते रहे होंगे।”

    “गधों का ज़माना गया, लारियां काम कर रही थीं और मुझे उनकी निगरानी करना पड़ती थी। दस करोड़ ईंटों का ठेका था, मुझे सारी रात जागना पड़ता था।”

    “मैं मान ही नहीं सकती कि आप एक रात भी जाग सकें।”

    “अब इसका क्या ईलाज है कि तुमने मेरे मुतअ’ल्लिक़ ऐसी ग़लत राय क़ायम करली है और मैं जानता हूँ कि तुम हज़ार सबूत देने पर भी मुझ पर यक़ीन नहीं करोगी।”

    “मेरा यक़ीन आप पर से अ’र्सा हुआ उठ गया है। आप परले दर्जे के झूटे हैं।”

    “बुहतान तराशी में तुम्हारी हम पल्ला और कोई औरत नहीं हो सकती। मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी झूट नहीं बोला।”

    “ठहरिए, परसों आपने मुझसे कहा कि आप किसी दोस्त के हाँ गए थे लेकिन जब शाम को आपने थोड़ी सी पी तो चहक-चहक कर मुझे बताया कि आप एक एक्ट्रेस से मिल कर आए हैं।”

    “वो एक्ट्रेस भी तो अपनी दोस्त है, दुश्मन तो नहीं। मेरा मतलब है अपने एक दोस्त की बीवी है।”

    “आपके दोस्तों की बीवियां उमूमन या तो एक्ट्रेस होती हैं, या तवाइफ़ें।”

    “इसमें मेरा क्या क़ुसूर?”

    “क़ुसूर तो मेरा है।”

    “वो कैसे?”

    “ऐसे कि मैंने आपसे शादी कर ली, मैं एक्ट्रेस हूँ तवाइफ़...”

    “मुझे एक्ट्रेसों और तवाइफ़ों से सख़्त नफ़रत है। मुझे उनसे कोई दिलचस्पी नहीं, वो औरतें नहीं स्लेटें हैं जिनपर कोई भी चंद हुरूफ़ या लंबी चौड़ी इबारत लिख कर मिटा सकता है।”

    “तो उस रोज़ आप क्यों उस एक्ट्रेस के पास गए?”

    “मेरे दोस्त ने बुलाया, मैं चला गया। उसने एक एक्ट्रेस से जो पहले चार शादियां कर चुकी थी, नया नया ब्याह रचाया था, मुझे इससे मुतआ’रिफ़ कराया गया।”

    “कैसी थी?”

    “चार शादियों के बाद भी वो ख़ासी जवान दिखाई देती थी, बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि वो आ’म कुंवारी जवान लड़कियों के मुक़ाबले में हर लिहाज़ से अच्छी थी।”

    “वो एक्ट्रेसें किस तरह ख़ुद को चुस्त और जवान रखती हैं।”

    “मुझे इसके मुतअ’ल्लिक़ कोई ज़्यादा इल्म नहीं। बस इतना सुना है कि वो अपने जिस्म और जान की हिफ़ाज़त करती हैं।”

    मैंने तो सुना है कि बड़ी बद-किर्दार होती हैं अव्वल दर्जे की फ़ाहिशा।”

    “अल्लाह बेहतर जानता है, मुझे उसके बारे में कोई इल्म नहीं।”

    “आप ऐसी बातों का जवाब हमेशा गोल कर जाते हैं।”

    “जब मुझे किसी ख़ास चीज़ के मुतअ’ल्लिक़ कुछ इल्म ही हो तो मैं जवाब क्या दूं? मैं तुम्हारे मिज़ाज के मुतअ’ल्लिक़ भी वसूक़ से कुछ नहीं कह सकता, घड़ी में तोला घड़ी में माशा।”

    “देखिए! आप मेरे मुतअ’ल्लिक़ कुछ कहा कीजिए। आप हमेशा मेरी बेइज़्ज़ती करते रहते हैं, मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकती।”

    “मैंने तुम्हारी बेइज़्ज़ती कब की है?”

    “ये बेइज़्ज़ती नहीं कि पंद्रह बरसों में आप मेरा मिज़ाज नहीं जान सके। इसका मतलब ये हुआ कि मैं मख़बूत-उल-हवास हूँ। नीम पागल हूँ, जाहिल हूँ उजड्ड हूँ।”

    “ये तो ख़ैर तुम नहीं, लेकिन तुम्हें समझना बहुत मुश्किल है। अभी तक मेरी समझ में नहीं आया कि तुमने मेरे बालों की बात किस ग़रज़ से शुरू की, इसलिए कि जब भी तुम कोई बात शुरू करती हो उसके पीछे कोई ख़ास बात ज़रूर होती है।”

    “ख़ास बात क्या होगी? बस आपसे सिर्फ़ यही कहना था कि बाल इतने बढ़ गए हैं, कटवा दीजिए। हज्जाम की दुकान यहां से कितनी दूर है, ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगी, जाईए, मैं पानी गर्म कराती हूँ।”

    “जाता हूँ, मैं ज़रा एक सिगरेट पी लूं।”

    “सिगरेट-विगरेट आप नहीं पियेंगे। सुबह से अब तक... ठहरिए मैं डिब्बा देख लूं। मेरे अल्लाह, बीस सिगरेट फूंक चुके हैं आप... बीस।”

    “ये तो कुछ ज़्यादा हुए, बारह बजने वाले हैं।”

    “ज़्यादा बातें मत कीजिए, सीधे हज्जाम के पास जाईए और ये अपने सर का बोझ उतरवाइए।”

    “जाता हूँ, कोई और काम हो तो बता दो।”

    “मेरा कोई काम नहीं, आप इस बहाने से मुझे टालना चाहते हैं।”

    “अच्छा तो मैं चला।”

    “ठहरिए।”

    “ठहर गया, फ़रमाईए।”

    “आपके बटुवे में कितने रुपये होंगे?”

    “पाँच सौ के क़रीब।”

    “तो यूं कीजिए, बाल कटवाने से पहले अनारकली से सोने की एक अँगूठी ले आईए। आज मेरी एक सहेली की सालगिरह है, दो ढाई सौ रुपये की हो...”

    “मेरी तो वहीं अनारकली ही में हजामत हो जाएगी, मैं जाता हूँ।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : بغیر اجازت

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए