आसरा पर शेर

दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा

मैं गिर पड़ूँगा देख मुझे आसरा दे

असलम अंसारी

आसरा दे के मेरे अश्क छीन

यही ले दे के बचा है मुझ में

अज्ञात

इक तेरा आसरा है फ़क़त ख़याल-ए-दोस्त

सब बुझ गए चराग़ शब-ए-इंतिज़ार में

फ़िगार उन्नावी

कुछ कह दो झूट ही कि तवक़्क़ो बंधी रहे

तोड़ो आसरा दिल-ए-उम्मीद-वार का

अज्ञात

भले ही छाँव दे आसरा तो देता है

ये आरज़ू का शजर है ख़िज़ाँ-रसीदा सही

ग़ालिब अयाज़

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़िंदगी तुझ से तअल्लुक़ खोखला साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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