धूप पर चित्र/छाया शायरी

शायरी की एक बड़ी ख़ूबी

ये है कि इसमें शब्दों का अपना अर्थ-शास्त्र होता है । कोई शब्द किसी एक और सामान्य अवधारणा को ही बयान नहीं करता । शायर की अपनी उड़ान होती है वो अपने तजरबे को पेश करने के लिए कभी किसी शब्द को रूपक बना देता है तो कभी अर्थ के विस्थापन में कामयाबी हासिल करता है । कह सकते हैं कि शायर अपने शब्दों के सहारे अपने विचारों को पेंट भी करता है और एक नए अर्थ-शास्त्र तक पहुँचता है । उर्दू शायरी में धूप और दोपहर जैसे शब्दों के सहारे भी नए अर्थ-शास्त्र की कल्पना की गई है ।

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