इतना दिल-ए-'नईम' को वीराँ न कर हिजाज़
रोएगी मौज-ए-गंग जो उस तक ख़बर गई
एक परिंदा चीख़ रहा है मस्जिद के मीनारे पर
दूर कहीं गंगा के किनारे आस का सूरज ढलता है
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