एक परिंदा चीख़ रहा है मस्जिद के मीनारे पर
दूर कहीं गंगा के किनारे आस का सूरज ढलता है
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टैग्ज़ : गंगा जमुनी तहज़ीबऔर 1 अन्य
ये मिसरा लिख दिया किस शोख़ ने मेहराब-ए-मस्जिद पर
ये नादाँ गिर गए सज्दों में जब वक़्त-ए-क़याम आया
पुख़्ता कर ले ऐ ज़ाहिद अपना ईमाँ
मस्जिद से पहले मय-ख़ाना पड़ता है