aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

मेंहदी पर शेर

उर्दू शायरी का माशूक़

अपनी सादगी में भी उतना ही हसीन लगता है जितना सोलह सिंगार करने के बाद। मेंहदी वो सिंगार है जिसे शायरों ने कभी आशिक़ का ख़ून कह कर तो कभी न आने के बहाने के तौर पर शायरी मे पिरोया है। हिना की दिलकशी ने सिर्फ़ महबूब को ही नहीं उर्दू शायरी को भी हुस्न की दौलत से मालामाल किया है। हिना की सुर्ख़ी के पर्दे में शायर को क्या-क्या नज़र आता है यह जानने के लिए हिना शायरी का यह इन्तिख़ाब आप की नज़्रः

दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत

उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं

अमीक़ हनफ़ी

मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो

मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के

रियाज़ ख़ैराबादी

लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है

कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है

आसी ग़ाज़ीपुरी

मेहंदी लगाने का जो ख़याल आया आप को

सूखे हुए दरख़्त हिना के हरे हुए

हैदर अली आतिश

अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में

हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से

रियाज़ ख़ैराबादी

मेहंदी ने ग़ज़ब दोनों तरफ़ आग लगा दी

तलवों में उधर और इधर दिल में लगी है

अज्ञात

मल रहे हैं वो अपने घर मेहंदी

हम यहाँ एड़ियाँ रगड़ते हैं

लाला माधव राम जौहर

हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग

मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे

मिर्ज़ा अज़फ़री

कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं अजब इस का क्या

कि मिरी ख़ाक से मेहंदी का शजर पैदा हो

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू

ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पा से तेरे लिपट रहा है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए