कैफ़ भोपाली के शेर
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
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दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
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टैग : दोस्त
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तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले
तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
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तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है
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आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
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साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ
माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
एक कमी थी ताज-महल में
मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी
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इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
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टैग : दोस्त
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इधर आ रक़ीब मेरे मैं तुझे गले लगा लूँ
मिरा इश्क़ बे-मज़ा था तिरी दुश्मनी से पहले
गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा
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तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
जनाब-ए-'कैफ़' ये दिल्ली है 'मीर' ओ 'ग़ालिब' की
यहाँ किसी की तरफ़-दारियाँ नहीं चलतीं
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टैग : दिल्ली
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मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर न देखो
मिरे साथ तुम भी हो रुस्वाइयों में
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टैग : रुस्वाई
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'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह
वुसअतें ख़ामोशियाँ गहराइयाँ
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टैग : प्रेरणादायक
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कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर
और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया
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टैग : बेचैनी
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दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
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टैग : बारिश
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हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले
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जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे
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टैग : ख़ुद्दारी
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वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअल्लुक़ था
दशहरे से दिवाली से बसंतों से बहारों से
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चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को
शहर में इन का भी घर है क्या करूँ
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मत देख कि फिरता हूँ तिरे हिज्र में ज़िंदा
ये पूछ कि जीने में मज़ा है कि नहीं है
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टैग : हिज्र
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आप ने झूटा व'अदा कर के
आज हमारी उम्र बढ़ा दी
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टैग : वादा
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कैसे मानें कि उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ़'
उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले
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टैग : ख़त
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उस ने ये कह कर फेर दिया ख़त
ख़ून से क्यूँ तहरीर नहीं है
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टैग : ख़त
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सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है
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टैग : बहाना
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चार जानिब देख कर सच बोलिए
आदमी फिरते हैं सरकारी बहुत
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इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा
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मय-कशो आगे बढ़ो तिश्ना-लबो आगे बढ़ो
अपना हक़ माँगा नहीं जाता है छीना जाए है
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टैग : मशवरा
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ये दाढ़ियाँ ये तिलक धारियाँ नहीं चलतीं
हमारे अहद में मक्कारियाँ नहीं चलतीं
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थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे
तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे
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उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं
उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ
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मैं ने जब पहले-पहल अपना वतन छोड़ा था
दूर तक मुझ को इक आवाज़ बुलाने आई
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चलते हैं बच के शैख़ ओ बरहमन के साए से
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ
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मेरे दिल ने देखा है यूँ भी उन को उलझन में
बार बार कमरे में बार बार आँगन में
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टैग : बेचैनी
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हाए लोगों की करम-फ़रमाइयाँ
तोहमतें बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
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