Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
noImage

रज़ा अज़ीमाबादी

रज़ा अज़ीमाबादी के शेर

1.8K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में

फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा

इमारत दैर मस्जिद की बनी है ईंट पत्थर से

दिल-ए-वीराना की किस चीज़ से तामीर होती है

सौ ईद अगर ज़माने में लाए फ़लक व-लेक

घर से हमारे माह-ए-मुहर्रम जाएगा

रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ख़य्यात

सिया जाए तो सी पहले तू चाक-ए-दिल ज़ुलेख़ा का

सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के

मिलता है जिस से यार ऐसी पढ़ाई बात

यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर

जिस ने किसी के दिल को कभी शादमाँ किया

काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन

सौ शुक्र मय-कदे में है ए'तिबार अपना

इस चश्म दिल ने कहना माना तमाम उम्र

हम पर ख़राबी लाई ये घर ही की फूट-फाट

क्या कहें अपनी सियह-बख़्ती ही का अंधेर है

वर्ना सब की हिज्र की रात ऐसी काली भी नहीं

इलाही चश्म-ए-बद उस से तू दूर ही रखियो

कि मस्त सख़्त हूँ मैं और अयाग़ नाज़ुक-तर

सुनते तो थे 'रज़ा' हैं सब हैं बड़े मुसलमाँ

पर कुफ़्र में ज़ियादा निकले वह बरहमन से

ख़्वाह काफ़िर मुझे कह ख़्वाह मुसलमान शैख़

बुत के हाथों में बिका या हूँ ख़ुदा की सौगंद

जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'

शैख़ बुत-ख़ाने में काबे में बरहमन रहा

ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ हो

चाक-ए-गरेबाँ का भी चाक गरेबाँ किया

हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक

वो भी उसी की गर्मी-ए-बाज़ार के लिए

सौ ग़म्ज़े के रखता है निगहबान पस-ओ-पेश

आता है अकेला पर अकेला नहीं आता

काबा है यहाँ मेरे है बुत-ख़ाना पहलू में

लिया किस घर बसे ने आह कर ख़ाना पहलू में

नौ-मश्क़-ए-इश्क़ हैं हम आहें करें अजब क्या

गीली जलेगी लकड़ी क्यूँकर धुआँ होगा

काबा दैर जिधर देखा उधर कसरत है

आह क्या जाने किधर गोशा-ए-तन्हाई है

ज़ख़्म के लगते ही क्या खुल गए छाती के किवाड़

आगे ये ख़ाना-ए-दिलचस्प हवा दार था

चला है काबे को बुत-ख़ाने से 'रज़ा' यारो

किसी ने ऐसा ख़ुदाई-ख़राब देखा है

गर गरेबाँ सिया तो क्या नासेह

सीने का चाक बिन सिया ही रहा

इक दम के वास्ते किया क्या क्या 'रज़ा'

देखा छुपाया तोड़ा बनाया कहा सुना

किस तरह 'रज़ा' तू हो धवाने ज़माना

जब दिल सा तिरी बैठा हो बदनाम बग़ल में

ख़ुशा हो कर बुताँ कब आशिक़ों को याद करते हैं

'रज़ा' हैराँ हूँ मैं किस बात पर है उतना भोला तू

Recitation

बोलिए