ख़ुदारा इक निगाह-ए-नाज़ ही से देख लो हम को
गरेबाँ फाड़ने को आज हम तय्यार बैठे हैं
चुप चुप मकान रास्ते गुम-सुम निढाल वक़्त
इस शहर के लिए कोई दीवाना चाहिए
नासेह की नसीहत से है ज़िद और भी दिल को
सुनता नहीं होश्यार की दीवाना हमारा
घूरने से क्या तुम्हारी आँखों के हम डर गए
वे अगर हैं मस्त ऐ प्यारे तो दीवाने हैं हम
गुज़र गए हैं वो लम्हे भी इश्क़ में ऐ दोस्त
तिरे बग़ैर भी जब ख़ुश रहे हैं दीवाने
तेरे शैदा भी हुए इश्क़-ए-तमाशा भी हुए
तेरे दीवाने तिरे शहर में रुस्वा भी हुए