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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

घमंड पर शेर

ग़ुरूर ज़िंदगी जीने

का एक मनफ़ी रवव्या है। आदमी जब ख़ुद पसंदी में मुब्तिला हो जाता है तो उसे अपनी ज़ात के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। शायरी में जिस ग़ुरूर को कसरत से मौज़ू बनाया गया है वह महबूब का इख़्तियार-कर्दा ग़ुरूर है। महबूब अपने हुस्न, अपनी चमक दमक, अपने चाहे जाने और अपने चाहने वालों की कसरत पर ग़ुरूर करता है और अपने आशिक़ों को अपने इस रवय्ये से दुख पहुँचाता है। एक छोटा सा शेरी इन्तिख़ाब आप के लिए हाज़िर है।

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है

भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

वसीम बरेलवी

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

बशीर बद्र

अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया

हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया

नूह नारवी

आसमानों में उड़ा करते हैं फूले फूले

हल्के लोगों के बड़े काम हवा करती है

मोहम्मद आज़म

रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अना

रोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है

ख़ुर्शीद तलब

वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है

कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी

अहमद फ़राज़

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