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आरज़ू लखनवी के शेर
ये गुल खिल रहा है वो मुरझा रहा है
असर दो तरह के हवा एक ही है
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है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
कोई अहद तोड़े करे दग़ा मिरा फ़र्ज़ है कि वफ़ा करूँ
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ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
मुझे दो-रंगी-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा
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किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की
थोड़ी सी तसल्ली हो तो गई माना कि वो बोल के झूट गया
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टैग : सच
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मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार
पीछे हट जाएगी मंज़िल मुझे मालूम न था
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एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम
आख़िर इतना फ़र्क़ क्यूँ तक़्सीम-ए-आब-ओ-गिल में है
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वहशत हम अपनी ब'अद-ए-फ़ना छोड़ जाएँ
अब तुम फिरोगे चाक गरेबाँ किए हुए
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रोका था दम भर लहराता आँसू
आ आ गया है दाँतों पसीना
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भोली बातों पे तेरी दिल को यक़ीं
पहले आता था अब नहीं आता
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टैग : भरोसा
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जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
मोहब्बत दीन होती है वफ़ा ईमान होती है
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अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें
दो सितारे फिर किसी दिन एक जा हो जाएँगे
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ख़ाली न अंदलीब का सोज़-ए-नफ़स गया
वो लू चली कि रंग गुलों का झुलस गया
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जिस क़दर नफ़रत बढ़ाई उतनी ही क़ुर्बत बढ़ी
अब जो महफ़िल में नहीं है वो तुम्हारे दिल में है
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जितने हुस्न-आबाद में पहोंचे होश-ओ-ख़िरद खो कर पहोंचे
माल भी तो उतने का नहीं अब जितना कुछ महसूल पड़ा
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दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया
समझे थे हम जिसे ख़लील काबा उसी ने ढा दिया
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टैग : दोस्त
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दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर
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टैग : रुस्वाई
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वफ़ा तुम से करेंगे दुख सहेंगे नाज़ उठाएँगे
जिसे आता है दिल देना उसे हर काम आता है
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
या तुम न हसीं होते या में न जवाँ होता
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टैग : वैलेंटाइन डे
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ये ज़ोरा-ज़ोरी इश्क़ की थी फ़ितरत ही जिस ने बदल डाली
जलता हुआ दिल हो कर पानी आँसू बन जाना क्या जाने
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अल्लाह अल्लाह हुस्न की ये पर्दा-दारी देखिए
भेद जिस ने खोलना चाहा वो दीवाना हुआ
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टैग : हुस्न
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सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है
शोले को बंद कर के पानी बना रहे हैं
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फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
शाम से ग़ाफ़िल सोने वाले देख तो कितनी रात रही
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लालच भरी मोहब्बत नज़रों से गिर न जाए
बद-ए'तिक़ाद दिल की झूटी नमाज़ हो कर
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हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें
चराग़ कब का बुझा पड़ा है मगर अंधेरा कहीं नहीं है
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निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
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ख़मोशी मेरी मअनी-ख़ेज़ थी ऐ आरज़ू कितनी
कि जिस ने जैसा चाहा वैसा अफ़्साना बना डाला
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टैग : ख़ामोशी
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फ़ज़ा महदूद कब है ऐ दिल-ए-वहशी फ़लक कैसा
निलाहट है नज़र की देखते हैं जो निगाहों से
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धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
सब बहते हुए दरियाओं के क्या दो ही किनारे होते हैं
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टैग : साहिल
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चटकी जो कली कोयल कूकी उल्फ़त की कहानी ख़त्म हुई
क्या किस ने कही क्या तू ने सुनी ये बात ज़माना क्या जाने
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हाथ से किस ने साग़र पटका मौसम की बे-कैफ़ी पर
इतना बरसा टूट के बादल डूब चला मय-ख़ाना भी
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कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना
वो मेरा समझ कर कुछ का कुछ जो कहना न था सब कह जाना
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टैग : वैलेंटाइन डे
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हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
शम्अ की शोअ'ला जब लहराई उड़ के चला परवाना भी
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
ये क्या हुआ मेरे चेहरे को अर्ज़-ए-हाल के बाद
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हम को इतना भी रिहाई की ख़ुशी में नहीं होश
टूटी ज़ंजीर कि ख़ुद पाँव हमारा टूटा
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ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहीं
कि शो'ला सुर्ख़ नहीं है धुआँ स्याह नहीं
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हल्का था नदामत से सरमाया इबादत का
इक क़तरे में बह निकले तस्बीह के सौ दाने
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अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
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वो क़िस्सा-ए-दर्द-आगीं चुप कर दिया था जिस ने
तुम से न सुना जाता मुझ से न बयाँ होता
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कम जो ठहरे जफ़ा से मेरी वफ़ा
तो ये पासंग है तराज़ू का
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हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
किस दर्जा दुखे दिल का रंगीन है अफ़्साना
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हर इक शाम कहती है फिर सुब्ह होगी
अँधेरे में सूरज नज़र आ रहा है
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दुख वो देता है उस पे है ये हाल
लेने जाता हूँ जब नहीं आता
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शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है
बा-वफ़ा जो आज हैं कल बे-वफ़ा हो जाएँगे
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सुकून-ए-दिल नहीं जिस वक़्त से उस बज़्म में आए
ज़रा सी चीज़ घबराहट में क्या जाने कहाँ रख दी
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कह के ये और कुछ कहा न गया
कि मुझे आप से शिकायत है
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टैग : शिकवा
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जज़्ब-ए-निगाह-ए-शोबदा-गर देखते रहे
दुनिया उन्हीं की थी वो जिधर देखे रहे
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हसरतों का दिल से क़ब्ज़ा उठ गया
ग़ासिबों की हुक्मरानी ख़त्म है
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इस छेड़ में बनते हैं होश्यार भी दीवाने
लहराया जहाँ शो'ला अंधे हुए परवाने
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मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र
तुम्हें ख़ाकसारों की क्या ख़बर कभी नीचे उतरे हो बाम से
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