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बशीर बद्र

1935 | भोपाल, भारत

लोकप्रिय आधुनिक शायर, सरल भाषा में शेर कहने के लिए जाने जाते हैं

लोकप्रिय आधुनिक शायर, सरल भाषा में शेर कहने के लिए जाने जाते हैं

बशीर बद्र के शेर

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रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर

उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली

मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई

ये एक पेड़ है इस से मिल के रो लें हम

यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे

इक हम ही ऐसे थे कि हमारा ख़ुदा था

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं

कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ

ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है

मुद्दतों सामना नहीं होता

हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा

जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे

प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ

मय-कदे में कोई छोटा बड़ा जाम उठा

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ

दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी

अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ

मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे

जी बहुत चाहता है सच बोलें

क्या करें हौसला नहीं होता

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है

वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है

वो शख़्स जिस को दिल जाँ से बढ़ के चाहा था

बिछड़ गया तो ब-ज़ाहिर कोई मलाल नहीं

चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर

छत पे जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो

मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो

तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे

लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे

जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे

उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है

तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा

तुम होश में हो हम होश में हैं

चलो मय-कदे में वहीं बात होगी

वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का

रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे

बचपन से ग़ज़ल ही मेरी महबूबा रही है

मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है

कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता

हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका

सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा

मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना

यक़ीं जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है

तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब

डॉलर में यूँ नचाएगी इक्कीसवीं सदी

वो चेहरा किताबी रहा सामने

बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई

तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई

हमारे हाथ में कोई लकीर ऐसी थी

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला

मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले

कभी हमारे क़दम बढ़े कभी तुम्हारी झिजक गई

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है

इस में तिरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी

ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो

हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली

कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें

शायद मेरे दिल की धड़कन चुनी है इन दीवारों में

वो बड़ा रहीम करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे

तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर हो

इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं

उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं

मैं चुप रहा तो और ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ीं

वो भी सुना है उस ने जो मैं ने कहा नहीं

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने

बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही मिला

इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं

ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती मिला

अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी मिला

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं

उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के

दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

उदास हो मलाल कर किसी बात का ख़याल कर

कई साल ब'अद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है

मेरी आँख के तारे अब देख पाओगे

रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में

मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में

वही दुख-भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमाँ है

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से

कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं

इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक

आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए

यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है

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