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हफ़ीज़ जालंधरी

1900 - 1982 | लाहौर, पाकिस्तान

लोकप्रिय रूमानी शायर, पाकिस्तान का राष्ट्रगान लिखा

लोकप्रिय रूमानी शायर, पाकिस्तान का राष्ट्रगान लिखा

हफ़ीज़ जालंधरी की टॉप 20 शायरी

ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं

मौत ही आती है ये मंज़िल दिखाने के लिए

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए

इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ

कहीं ऐसा हो जाए कहीं ऐसा हो जाए

जिस ने इस दौर के इंसान किए हैं पैदा

वही मेरा भी ख़ुदा हो मुझे मंज़ूर नहीं

किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं

किस मुँह से तुम ने व'अदा किया था निबाह का

मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा

मुझ को मिलता भी क्या सज़ा के सिवा

हम ही में थी कोई बात याद तुम को सके

तुम ने हमें भुला दिया हम तुम्हें भुला सके

हाँ मैं तो लिए फिरता हूँ इक सजदा-ए-बेताब

उन से भी तो पूछो वो ख़ुदा हैं कि नहीं हैं

दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा

अब मैं दिल को क्या समझाऊँ मुझ को भी समझाता जा

हाए कोई दवा करो हाए कोई दुआ करो

हाए जिगर में दर्द है हाए जिगर को क्या करूँ

मुझे तो इस ख़बर ने खो दिया है

सुना है मैं कहीं पाया गया हूँ

देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़

अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई

बुत-कदे से चले हो काबे को

क्या मिलेगा तुम्हें ख़ुदा के सिवा

अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल

कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके

तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक

क़यामत चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया

नहीं इताब-ए-ज़माना ख़िताब के क़ाबिल

तिरा जवाब यही है कि मुस्कुराए जा

रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं

वो मुलाक़ातें गईं वो चाँदनी रातें गईं

अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर बातिन एक नहीं

लब ऊपर ऊपर हँसते हैं दिल अंदर अंदर रोता है

'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली

उर्दू हिन्दी हिन्दोस्तानी

वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया

जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया

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