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मोहब्बत पर शेर

मोहब्बत पर ये शायरी

आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.

जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ पहुँचा

दुआ भी काम आए कोई दवा लगे

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा

यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो

बशीर बद्र

उठाए फिरता रहा मैं बहुत मोहब्बत को

फिर एक दिन यूँही सोचा ये क्या मुसीबत है

अंजुम सलीमी

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले

मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

शकील बदायूनी

ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता

मैं तुझ से जुदा हो के भी तन्हा नहीं होता

शहरयार

जो कुछ पड़ती है सर पर सब उठाता है मोहब्बत में

जहाँ दिल गया फिर आदमी मजबूर होता है

लाला माधव राम जौहर

बारहा उन से मिलने की क़सम खाता हूँ मैं

और फिर ये बात क़स्दन भूल भी जाता हूँ मैं

इक़बाल अज़ीम

इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है

होश के दौर में भी जामा-दरी माँगे है

उनवान चिश्ती

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है

ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है

अर्श मलसियानी

हमें भी नींद जाएगी हम भी सो ही जाएँगे

अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ

क़तील शिफ़ाई

सर दीजे राह-ए-इश्क़ में पर मुँह मोड़िए

पत्थर की सी लकीर है ये कोह-कन की बात

जुरअत क़लंदर बख़्श

आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब

ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे

इक़बाल अज़ीम

करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम

मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले

मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

क़ैसर-उल जाफ़री

मैं तो सुनता हूँ तुम्हें भी है मोहब्बत मुझ से

सच कहो तुम को मिरे सर की क़सम है कि नहीं

जलील मानिकपूरी

मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी

ये तिरी सादा-दिली मार डाले मुझ को

क़तील शिफ़ाई

नफ़रत से मोहब्बत को सहारे भी मिले हैं

तूफ़ान के दामन में किनारे भी मिले हैं

अली ज़हीर रिज़वी लखनवी

इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो

सारे आलम में भर रहा है इश्क़

मीर तक़ी मीर

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ

जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो

बशीर बद्र

इश्क़ वजह-ए-ज़िंदगी भी दुश्मन-ए-जानी भी है

ये नदी पायाब भी है और तूफ़ानी भी है

जवाँ संदेलवी

वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है

इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा

साहिर लुधियानवी

शायद इसी का नाम मोहब्बत है 'शेफ़्ता'

इक आग सी है सीने के अंदर लगी हुई

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें

आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत

बशीर बद्र

यूँ मोहब्बत से जो चाहे कोई अपना कर ले

जो हमारा हो उस के कहीं हम होते हैं

लाला माधव राम जौहर

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'

मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

शकील बदायूनी

था बड़ा मअरका मोहब्बत का

सर किया मैं ने दे के सर अपना

जलील मानिकपूरी

इश्क़ है तर्ज़ तौर इश्क़ के तईं

कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़

मीर तक़ी मीर

मुझे अब तुम से डर लगने लगा है

तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या

जौन एलिया

इश्क़ जब तक कर चुके रुस्वा

आदमी काम का नहीं होता

जिगर मुरादाबादी

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी

कोई आहट हो दर पर मिरे जब तू आए

बशीर बद्र

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा लगे

क़ैसर-उल जाफ़री

इश्क़ बहरूप था जो चश्म दिल सर में रहा

कहीं हैरत कहीं वहशत कहीं सौदा बन कर

जलील मानिकपूरी

इश्क़ में बू है किबरियाई की

आशिक़ी जिस ने की ख़ुदाई की

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

लोग कहते हैं कि तुम से ही मोहब्बत है मुझे

तुम जो कहते हो कि वहशत है तो वहशत होगी

अब्दुल हमीद अदम

इश्क़ के मज़मूँ थे जिन में वो रिसाले क्या हुए

किताब-ए-ज़िंदगी तेरे हवाले क्या हुए

अबु मोहम्मद सहर

तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ

जिस से मरता हूँ उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ

अहमद कमाल परवाज़ी

इश्क़ पर कुछ चला दीदा-ए-तर का क़ाबू

उस ने जो आग लगा दी वो बुझाई गई

जिगर मुरादाबादी

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई

सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम

जी भर के देखा कुछ बात की

बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

बशीर बद्र

'शकील' इस दर्जा मायूसी शुरू-ए-इश्क़ में कैसी

अभी तो और होना है ख़राब आहिस्ता आहिस्ता

शकील बदायूनी

नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत

सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ

तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ

साहिर लुधियानवी

एक कमी थी ताज-महल में

मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी

कैफ़ भोपाली

मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती

ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है

लाला माधव राम जौहर

इश्क़ को एक उम्र चाहिए और

उम्र का कोई ए'तिबार नहीं

जिगर बरेलवी

इश्क़ तो हर शख़्स करता है 'शुऊर'

तुम ने अपना हाल ये क्या कर लिया

अनवर शऊर

टपके जो अश्क वलवले शादाब हो गए

कितने अजीब इश्क़ के आदाब हो गए

अल्ताफ़ मशहदी

वो सितम ढाए तो क्या करे उसे क्या ख़बर कि वफ़ा है क्या?

तू उसी को प्यार करे है क्यूँ ये 'कलीम' तुझ को हुआ है क्या?

कलीम आजिज़

शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास

सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास

साग़र आज़मी

मैं जब 'क़तील' अपना सब कुछ लुटा चुका हूँ

अब मेरा प्यार मुझ से दानाई चाहता है

क़तील शिफ़ाई
बोलिए