शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम के शेर
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
सुब्ह उठ कर ख़ुमार की ख़ातिर
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मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
मिरे रोने पे हँसता है मिरा दिल
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गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
वो कहीं गुल है कहीं बू है कहीं बूटा है
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क़यामत तक जुदा होवे न या-रब
जुनूँ के दस्त से मेरा गरेबाँ
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रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
मेरे चश्मों का दो-आबा मजम-उल-बहरैन है
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टैग : गिर्या-ओ-ज़ारी
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नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
किसू ने देखी नहीं अपनी जान की सूरत
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कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
वर्ना बहतेरे हैं पथर फोड़े
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नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
जाएगा कब इलाही मज्लिस से ख़ार दिल का
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गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
वगर्ना हिर्स आगे थान सौ गज़ का लंगोटी है
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जिस के मुँह की उतर गई लोई
ग़म नहीं उस को कुछ कहो कोई
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रिश्ता-ए-उमर-दराज़ अपना मैं कोताह करूँ
आवे ये तार अगर तेरे ब-कार-ए-दामन
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तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
किधर से आ गया मस्जिद में हिन्दू
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क्यूँकर इन काली बलाओं से बचेगा आशिक़
ख़त सियह ख़ाल सियह ज़ुल्फ़ सियह चश्म सियाह
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आरिज़ से उस के ज़ुल्फ़ में क्यूँ-कर है रौशनी
ज़ुल्मात में तो नाम नहीं आफ़्ताब का
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क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
कुइ तिरा घर नहीं ये रस्ता है
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टैग : बेकसी
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कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ
धोना वही जो दिल की सियाही को धोइए
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फड़कूँ तो सर फटे है न फड़कूँ तो जी घटे
तंग इस क़दर दिया मुझे सय्याद ने क़फ़स
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टैग : कशमकश
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कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
ब-रब्ब-ए-क'अबा तुझे हसरत-ए-हरम न रहे
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न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा
यूँही दिन रात मिलते मुझ को तुझ को मेरी जाँ गुज़रा
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टूटे दिल को बना दिखावे
ऐसा कोई कारी-गर न देखा
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किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
इस शहर में रहा भी कोई दर्द-मंद है
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ज़ाहिद को हम ने देख ख़राबात में कहा
मस्जिद को अपनी छोड़ कहो तुम यहाँ कहाँ
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क्या मदरसे में दहर के उल्टी हवा बही
वाइज़ नही को अम्र कहे अम्र को नही
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टैग : वाइज़
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केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा
सुनते थे हम सो देखा तो शाख़-ए-ज़ाफ़राँ है
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दिल-ए-उश्शाक़ परिंदों की तरह उड़ते हैं
इस बयाबान में क्या एक भी सय्याद नहीं
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दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम ये क्या ढंग है
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सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
कूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
ऐसा कोई हम ने हुनर न देखा
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टैग : हुनर
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मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी
इस घड़ी अक़्ल मिरी मुझ से जुदा फिरती है
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रोने तलक तो किस को है फ़ुर्सत यहाँ सहाब
तूफ़ाँ हुआ भी जो टुक इक आब-दीदा हूँ
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टैग : आब दीदा
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देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला
खोल छाती बे-तकल्लुफ़ जब नहाएँ बाग़ में
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हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
क्या चाहिए है हम को सर अंजाम के लिए
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हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
चर्ब है सब पर बुतान-ए-हिन्द का रंग-ए-मलीह
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दिल की लहरों का तूल-ओ-अर्ज़ न पूछ
कभू दरिया कभू सफ़ीना है
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टैग : दिल
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वो वहशी इस क़दर भड़का है सूरत से मिरे यारो
कि अपने देख साए को मुझे हमराह जाने है
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टैग : साया
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इलाही तुझ से अब कहता है 'हातिम' इस ज़माने में
शरम रखना भरम रखना धरम रखना करम रखना
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इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
जो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा बीमार हो गया
तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
जूँ कि बुलबुल बहार की ख़ातिर
कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
आ देख बज़्म में कि हुई है बहार-ए-जाम
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वस्फ़ अँखियों का लिखा हम ने गुल-ए-बादाम पर
कर के नर्गिस को क़लम और चश्म-ए-आहू की दवात
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रहन-ए-शराब-ख़ाना किया शैख़ हैफ़ है
जो पैरहन बनाया था एहराम के लिए
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मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी
अचरज है जो न टूटे पत्थर से आबगीना
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तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
हिसार-ए-क़ल्ब की गोया थी फ़तह तेरे नाम
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बस नहीं चलता जो उस दम उन के ऊपर गर पड़े
आशिक़ ओ माशूक़ को जब एक जा पाता है चर्ख़
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सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
हुआ आज़ाद क़ैद-ए-मज़हब-ओ-मशरब से अब फ़ारिग़
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जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से
दिल बग़ल-बीच मिरा दुश्मन-ए-जाँ है गोया
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फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
जो दाग़ दिल पे इश्क़ में तेरे दिए हैं हम
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हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
मानिंद-ए-शम्अ रौशन हर एक उस्तुख़्वाँ है
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कभू पहुँची न उस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
बजा इस आह-ए-बे-तासीर पर तासीर हँसती है
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शम्अ हर शाम तेरे रोने पर
सुब्ह-दम तक चराग़ हँसता है
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