किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
बहनों की मोहब्बत की है अज़्मत की अलामत
राखी का है त्यौहार मोहब्बत की अलामत
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज
राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
अज़ल से बरसे है पाकीज़गी फ़लक से यहाँ
नुमायाँ होवे है फिर शक्ल-ए-बहन में वो यहाँ