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फ़िराक़ गोरखपुरी के शेर
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
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कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
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तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें
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मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
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हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
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मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
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न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
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टैग : इंतिज़ार
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आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
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अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
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रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
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टैग : जवानी
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कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका
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बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
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जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर उसी सिलसिले के हैं
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इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
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टैग : ज़िंदगी
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किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
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मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर
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लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
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ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएँ
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तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
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खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
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टैग : क़िस्मत
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कुछ न पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब
रात है नींद है कहानी है
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तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें
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टैग : इंतिज़ार
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साँस लेती है वो ज़मीन 'फ़िराक़'
जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं
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टैग : महबूब
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तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए
मुद्दतों के बा'द देखा था तो आँसू आ गए
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देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़
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रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें
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अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
यारों ने कितनी दूर बसाई हैं बस्तियाँ
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आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है
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टैग : तअल्ली
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ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा
और अगर रोइए तो पानी है
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लाई न ऐसों-वैसों को ख़ातिर में आज तक
ऊँची है किस क़दर तिरी नीची निगाह भी
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पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते
सिर्फ़ सेह्हत के सहारे उम्र तो कटती नहीं
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कौन ये ले रहा है अंगड़ाई
आसमानों को नींद आती है
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टैग : अंगड़ाई
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मैं देर तक तुझे ख़ुद ही न रोकता लेकिन
तू जिस अदा से उठा है उसी का रोना है
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जिस में हो याद भी तिरी शामिल
हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए
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इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
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सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
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टैग : हिंदुस्तान
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तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस
कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ
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देवताओं का ख़ुदा से होगा काम
आदमी को आदमी दरकार है
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टैग : इंसान
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शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो
यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा'लूम न था
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पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
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कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम
कह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम
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