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इरफ़ान हबीब

Delhi jo ek shahr tha I Irfan Habib I Rana Safvi I Jashn-e-Rekhta 2017

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आज के चुनिन्दा 5 शेर

आज का शब्द

दाइम

  • daa.im
  • دائم

शब्दार्थ

perpetual/ permanent

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

I do not lie embedded, ensconced upon your door

I am not merely a stone, such life I do abhor

I do not lie embedded, ensconced upon your door

I am not merely a stone, such life I do abhor

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क्या आप जानते हैं?

नस्तालीक़ वह सुंदर लिपि है जिसमें उर्दू लिखी जाती है जो चौदहवीं व पंद्रहवीं शताब्दी में ईरान में बनाई गई थी।"नस्ख़" वो लिपि है जिसमें आम तौर पर अरबी लिखी जाती है और उसी तरह "तालीक़" एक फ़ारसी लिपि है। नस्ख़ और तालीक़ दोनों मिलकर "नस्तालीक़" बन गए। उर्दू में शिष्ठ और सभ्य लोगों को भी "नस्तालीक़" कहा जाता है अर्थात बहुत निर्मल और साफ़ तबियत का मालिक।

क्या आप जानते हैं?

सारा

सारा शगुफ़्ता आधुनिक दौर की पाकिस्तानी शायरा थीं। 1947 में भारत के बटवारे में उनका परिवार पंजाब से कराची चला गया। उनका जीवन परिश्रम और बलिदान से भरा हुआ था। एक ग़रीब और अनपढ़ परिवार से अल्लुक़ रखने वाली सारा शगुफ़्ता शिक्षा के माध्यम से समाज में अपना मक़ाम बनाना चाहती थीं, मगर वो मैट्रिक पास न कर सकीं। उनकी शादी 17 साल की उम्र में ही कर दी गई थी, इसके बाद भी तीन शादिया हुईं मगर वो सब भी असफल रहीं।  वो अपने छोटे बेटे की मौत और अपने पति की बेहिसी पर बहुत नाराज़ हुईं। अपने पति और समाज के बुरे बर्ताव की वजह से वो नज़्में कहने लगीं। मगर कुछ दिन के बाद दिमाग़ी रोग से दो-चार हुईं, जिस की वजह से उन्हें मानसिक चिकित्सालय जाना पड़ा। आत्महत्या की कई कोशिशों के बाद सारा शगुफ्ता ने बिल-आख़िर 29 बरस की उम्र में आत्महत्या कर ली। उनके व्यक्तित्व और शायरी को बुनियाद बना कर अमृता प्रीतम ने ''एक थी सारा'' के नाम से किताब लिखी।

क्या आप जानते हैं?

अमीर

उर्दू के पहले उल्लेखनीय सूफ़ी, शायर, संगीत के माहिर हज़रत अमीर खुसरो हैं। उर्दू की पहली ग़ज़ल भी आपकी ही लिखी हुई है। अमीर ख़ुसरो ने उर्दू की विभिन्न विधाओं ग़ज़ल, पहेलियां, गीत आदि में अभ्यास किया। आप ख़्वाजा हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के मुरीद थे उस वक़्त  के बादशाह से भी आप के सम्बंध थे। आपकी क़ब्र हज़रत निज़ामुद्दीन की क़ब्र के बग़ल में है।

क्या आप जानते हैं?

उर्दू में मल्लाह में मांझी या जहाज़ चलाने वाले को कहते हैं। इस शब्द का संबंध अरबी भाषा के शब्द 'मलह' अर्थात नमक से है। चूंकि समुंदर का पानी खारा होता है, पहले तो समुंदर के पानी से नमक बनाने वालों को 'मल्लाह' कहा गया, फिर समुंदर में जाने वालोें को मल्लाह कहा जाने लगा। अब तो मीठे पानी की झील में किश्ती चलाने वाले को भी मल्लाह ही कहते हैं। शब्द 'मलाहत' भी उर्दू में जाना पहचाना है, इसका संबंध भी 'मलह' अर्थात नमक से है यानी सांवलापन, ख़ूबसूरत। बहुत से अश्आर में इसे कई तरीके से बरता गया है।
किश्ती और पानी के सफ़र से संबंधित एक और शब्द उर्दू शायरी में बहुत मिलता है,'नाख़ुदा' जो नाव और ख़ुदा से मिल कर बना है और फ़ारसी से आया है अर्थात किश्ती का मालिक या सरदार:

तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूं मैं

क्या आप जानते हैं?

मीर

मीर तक़ी मीर के बारे में आम धारणा यह है कि वह टूटे हुए दिल, दुनिया से परेशान इंसान थे जो दर्द-पीड़ा में डूबे अश्आर ही कहते थे। लेकिन दुनिया की दूसरी चीज़ों के साथ साथ मीर को जानवरों से भी गहरी दिलचस्पी थी जो उनकी मसनवियों और आत्म कथात्मक घरेलू नज़्मों में बहुत ही सृजनात्मक ढंग से नज़र आती है। दूसरे शायरों ने भी जानवरों के बारे में लिखा है लेकिन मीर के अशआर में जब जानवर ज़िंदगी का हिस्सा बन कर आते हैं तो उनमें मानवीय गुणों और विशेषताओं का भी रंग आ जाता है। मीर की मसनवी 'मोहिनी बिल्ली' की बिल्ली भी एक पात्र ही मालूम होती है। 'कुपी का बच्चा' में बंदर का बच्चा भी बहुत हद तक इंसान नज़र आता है। मसनवी 'मोर नामा' एक रानी और एक मोर के इश्क़ की दुखद दास्तान है जिसमें दोनों आख़िर में जल मरते हैं। इसके अलावा मुर्ग़, बकरी आदि पर भी उनकी मसनवियां हैं।
उनकी मशहूर मसनवी 'अज़दर नामा' जानवरों के नाम, उनकी आदतें और विशेषताओं के वर्णन से भरा हुआ है। उसमें केंद्रीय पात्र अजगर के अलावा तीस जानवरों के नाम शामिल हैं। मोहम्मद हुसैन आज़ाद ने लिखा है कि मीर ने उसमें ख़ुद को अज़दहा कहा और दूसरे सभी शायरों को कीड़े मकोड़े माना है, हालांकि उसमें किसी का नाम नहीं लिया गया है।

आज की प्रस्तुति

पाकिस्तान में अग्रणी शायरों में शामिल, अपनी सांस्कृतिक रूमानियत के लिए मशहूर।

कहाँ के नाम नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या

जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या

पूर्ण ग़ज़ल देखें

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ई-पुस्तकें

फ़ल्सफ़ा की पहली किताब

मीर वलीउद्दीन 

1928 दर्शन / फ़िलॉसफ़ी

शुमारा नम्बर-001

ग़ुलाम अहमद गुल 

1930 Adeeb Jild 1 No 1 January 1930-SVK

कुल्लियात-ए-अज़ीज़

अज़ीज़ वारसी 

1993 महाकाव्य

कबीर साहब

पंडित मनोहर लाल ज़ुतशी 

1994 आलोचना

Adab Aur Zindagi

मजनूँ गोरखपुरी 

1939 आलोचना

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